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“अकबर एक राष्ट्रीय शासक था।” इस कथन के आलोक में उसकी उपलब्धियों का मूल्यांकन कीजिए।

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अकबर ने अपने शासन के दौरान ऐसे कार्य किये जिसके आधार पर उसे एक राष्ट्रीय शासक कहा गया है। राष्ट्रीय शासक वह कहलाता है जिसके शासन में उसकी सम्पूर्ण प्रजा के साथ शासन के सभी क्षेत्रों में समान व्यवहार किया जाये और राज्य की ओर से व्यक्ति-व्यक्ति में धर्म, जाति और वंश के आधार पर कोई भेदभाव न किया जाये। शासक अपनी प्रजा को पुत्रवत् समझे और राष्ट्र की सारी जनता सम्राट को अपना शासक माने। अकबर ऐसा ही सम्राट था। इस दिशा में राजनीतिक एकता स्थापित करना अकबर का प्रथम कदम था। दूसरा उसने पूरे देश में एक जैसी शासन-प्रणाली, न्याय व्यवस्था तथा मालगुजारी बन्दोबस्त, एक राज्य भाषा, एक मुद्रा व्यवस्था की स्थापना की। अकबर का लक्ष्य सम्पूर्ण भारत को एक राज्य और एक शासन के अन्तर्गत संगठित करने का था।

जिस समय अकबर गद्दी पर बैठा उस समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक स्थिति अशांत थी। केन्द्रीय सत्ता का नामोनिशान नहीं था। स्थानीय तत्त्व ही राजनीति और प्रशासन में अधिक प्रभावशाली थे। प्रशासनिक व्यवस्था ठप्प पड चकी थी। सामाजिक एवं आर्थिक विभेद चरम सीमा पर पहुँच चुके थे। ऐसी विषम परिस्थितियों में अकबर ने साहस नहीं खोया। उसने भारत को ही अपना देश समझा और इसके विकास के लिए अनवरत प्रयास किये। उसके ये कार्य उसे एक राष्ट्रीय शासक बनाते हैं। इस संदर्भ की पुष्टि अकबर के निम्नलिखित कार्यों से की जा सकती है

(i) राजनीतिक एकीकरण – अकबर का सबसे पहला उद्देश्य भारत को एक राजनीतिक सूत्र में बाँधकर भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना जगाना था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अकबर ने साम्राज्यवादी नीति अपनाई और पानीपत से लेकर असीरगढ़ के युद्ध तथा सम्पूर्ण उत्तर-पूर्वी भारत और दक्षिण के एक बड़े भाग पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने राजपूतों और अफगानों की शक्ति को भी नतमस्तक कर दिया। इसके लिए उसने सैनिक शक्ति के अतिरिक्त कूटनीति का भी सहारा लिया। उसके प्रयासों से लगभग सम्पूर्ण भारत एक केन्द्रीय सत्ता के अधीन आ गया तथा मुगल सैनिक आक्रमणकारी से भारतीय राजवंशी बन गए।

(ii) प्रशासनिक एकीकरण – अकबर ने न सिर्फ सम्पूर्ण भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की, बल्कि उसने पूरे साम्राज्य के लिए समान प्रशासनिक व्यवस्था भी स्थापित की। उसके प्रशासन का उद्देश्य राजनीति को धर्म से अलग कर साम्राज्य में रहने वाले सभी लोगों का कल्याण करना एवं उन्हें न्याय तथा समान अवसर प्रदान करना था। इसलिए, उसने तुर्क अफगानयुगीन धार्मिक कट्टरता की नीति त्याग दी और अपने प्रबलतम राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वियों- राजपूतों को भी प्रशासन और सेना में प्रमुखता दी। राजनीतिक एकता बिना प्रशासनिक एकता के अधूरी रहती। इसलिए, उसने पूरे साम्राज्य में एक जैसी प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित की। यह उसकी एक महान् उपलब्धि थी।

(iii) धार्मिक एकीकरण – राष्ट्रीय एकता स्थापित करने की दिशा में अकबर का साहसिक और मौलिक कार्य धार्मिक क्षेत्र में था। तुर्क-अफगान शासकों के समय में धर्म एवं राजनीति का अटूट सम्बन्ध था। अकबर इस बात को अच्छी तरह समझता था कि इस्लाम धर्म का सहारा लेकर सम्पूर्ण भारत पर शासन नहीं किया जा सकता। इसलिए, उसने राजनीति और धर्म को पृथक् कर दिया। बलात् धर्म परिवर्तन की प्रक्रिया बन्द कर दी गई। हिन्दुओं पर से जजिया और तीर्थयात्रा कर हटा लिए गए। उन्हें मंदिरों के निर्माण और मरम्मत की सुविधा एवं आवश्यक सहायता भी प्रदान की गई। अन्य धर्मावलंबियों-सिक्खों, पारसियों, ईसाइयों, मुसलमानों को भी धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गई। इस प्रकार अकबर ने धार्मिक विद्वेष, वैमनस्य एवं कटुता की भावना को समाप्त कर आपसी सद्भाव, सहयोग, एकता एवं धर्म-सहिष्णुता की भावना जगाई और एक संगठित राष्ट्र के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया।

(iv) सामाजिक एकता के लिए प्रयास – अकबर का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य था सामाजिक एकता स्थापित करने का प्रयास। उसने समाज के दो बहुसंख्यक वर्गों- हिन्दू और मुसलमानों के उत्थान के लिए समान रूप से प्रयास किए। उसने हिन्दू समाज में प्रचलित सती प्रथा एवं बाल-विवाह को प्रतिबन्धित करने की कोशिश की। इसी प्रकार मुसलमानों के दाढ़ी रखने, गो-मांस भक्षण, शराबखोरी, रमजान का व्रत रखने एवं हज की यात्रा समाप्त करने का प्रयास किया। वह इस्लाम धर्म को मानते हुए भी हिन्दुओं के पर्वो एवं त्योहारों- दशहरा, दीपावली, रक्षाबन्धन, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी आदि को पूरी श्रद्धा और उत्साह से मनाता था। अकबर की सुलह-कुल की नीति ने आपसी विभेद को मिटाने एवं एक सुसंगठित राज्य, समाज और राष्ट्र के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया।

(v) सांस्कृतिक एकता की दिशा में योगदान – सांस्कृतिक उत्थान के क्षेत्र में भी सराहनीय कार्य किए। उसने फारसी के साथ-साथ संस्कृत भाषा और साहित्य के विकास पर भी पूरा ध्यान दिया। उसने महाभारत, गीता, रामायण, बाइबिल, कुरान, अथर्ववेद, पंचतन्त्र इत्यादि का फारसी में अनुवाद करवाया। कुछ फारसी ग्रन्थों का संस्कृत में भी अनुवाद किया गया। अकबर ने अपने दरबार में अनेक कलाकारों, कवियों, चित्रकारों, संगीतकारों को संरक्षण एवं प्रोत्साहन दिया। भवन निर्माण के क्षेत्र में भी उसकी महान् उपलब्धियाँ हैं। उसने ऐसे भवनों का निर्माण करवाया जिनमें हिन्दू और इस्लामी शैलियों का मिश्रण स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। अकबर के प्रयासों से भारत की विभिन्न कला-पद्धतियों का समन्वय एवं विकास हो सका। ईरानी, इस्लामी और हिन्दू कला एक-दूसरे के निकट आ सकीं।

(vi) आर्थिक एकता – अकबर ने व्यवसाय और व्यापार को नियन्त्रित कर देश की आर्थिक समृद्धि का मार्ग भी खोला। अनेक प्रकार की दस्तकारियों को देश में प्रोत्साहन मिला जिसके फलस्वरूप देश विकास एवं समृद्धि की चरम सीमा पर पहुंचकर विदेशी यात्रियों और दूतों की आँखों में चकाचौंध पैदा करने लगा। इस प्रकार सभी इतिहासकारों यह स्वीकार करते हैं कि अकबर का उद्देश्य भारत की एकता, उसकी उन्नति और उसके सभी निवासियों की समान प्रगति तथा उन्हें सुविधाएँ प्रदान करना था। इस दृष्टि से प्रायः सभी इतिहासकार उसे राष्ट्रीय शासक स्वीकार करते हैं।



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