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अकबर मुगल शासकों में सर्वश्रेष्ठ भारतीय शासक था’ इस कथन के आलोक में अकबर का मूल्याकंन कीजिए।

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अकबर मुगल शासकों में सर्वश्रेष्ठ, भारतीय शासकों में महान् और विश्व के शासकों में एक श्रेष्ठ और सम्मानित पद का अधिकारी है। लेनपूल ने उसे भारत के बादशाहों में सर्वश्रेष्ठ बादशाह’ तथा उसके युग को ‘मुगल साम्राज्य का स्वर्णकाल कहा। इतिहासकार स्मिथ जो कई दृष्टिकोणों से अकबर की आलोचना करता है, इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि वह मनुष्यों का जन्मजात बादशाह था।’ इतिहास के सर्वशक्तिशाली बादशाहों में से एक होने का उसका न्यायपूर्ण अधिकार है।

अकबर का व्यक्तित्व सुन्दर और प्रभावशाली था। वह एक आज्ञाकारी पुत्र, प्रिय पति और आदरणीय पिता था। वह अबुल फजल की मृत्यु पर बहुत रोया था और दो दिन तक उसने भोजन ग्रहण नहीं किया था। वह शिक्षित न था, परन्तु उसने विद्वानों को सम्मान और आश्रय दिया। उसने एक पुस्तकालय बनाया, जिसमें 24,000 ग्रन्थ थे। उसे खेलकूद और शिकार का शौक था। कठोर परिश्रम करने तथा कठिनाइयों को बर्दाश्त करना उसका स्वभाव था। उसमें साहस और धैर्य कूट-कूटकर भरा हुआ था। वह धार्मिक दृष्टि से अपने युग का प्रवर्तक था। अकबर भी शराब, अफीम आदि मादक द्रव्यों का सेवन करता था परन्तु वह उनका आदी न था। अकबर ने तत्कालीन अन्य शासकों की भाँति बहुत विवाह किए थे। उसके हरम में करीब 5000 स्त्रियाँ थीं और उनमें उसकी रखैलों की संख्या भी बहुत रही होगी परन्तु जैसा कि प्रति सप्ताह मीना बाजार लगाकर सुन्दर स्त्रियों को खोजना और बीकानेर के पृथ्वीराज राठौर की पत्नी के शील पर आक्रमण करने की चेष्टा आदि किंवदन्तियाँ ठीक प्रतीत नहीं होती।

अकबर एक कुशल और प्रतिभाशाली सेनापति था। उसने सेनापति के रूप में अनेक सैनिक अभियानों में सफलता प्राप्त की। गुजरात के विद्रोह को दबाने के लिए वह जिस तीव्र गति से गया था, वह एक ऐतिहासिक सैनिक अभियान माना गया है। उसके समय में मुगलई सेना अजेय बन गई। संगठन और युद्ध नीति दोनों ही इसके लिए उत्तरदायी थीं और अकबर का इसमें बहुत बड़ा हाथ था। एक शासन-प्रबन्धक की दृष्टि से अकबर में मौलिकता एवं व्यवहारिकता दोनों ही थीं। अकबर के शासन की एक मुख्य विशेषता यह थी कि उसने साम्राज्य के शासन-सूत्र को एक धागे में पिरो दिया था, जिससे मुगल साम्राज्य राजनीतिक स्थायित्व प्राप्त कर सका। एक शासक और राजनीतिज्ञ की दृष्टि से अकबर की धार्मिक उदारता की नीति और राजपूत नीति अद्वितीय थी।
निश्चय ही अकबर ने भारत की सांस्कृतिक एकता की उन्नति के लिए प्रयत्न किए। फारसी भाषा को राजभाषा का दर्जा दिया और विभिन्न भाषाओं के श्रेष्ठ ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद किया गया। इसी प्रकार अकबर ललित कलाओं की विभिन्न पद्धतियों में समन्वय स्थापित करने में सफल हुआ। चित्रकला एवं स्थापत्य के क्षेत्र में इस समय किए गए नवीन प्रयोगों ने भविष्य का मार्ग प्रशस्त किया।
अकबर ने अनेक सामाजिक कुरीतियों के निराकरण के प्रयास किए। दास प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह, वृद्ध विवाह आदि को रोकने का प्रयत्न किया। अकबर ने जिन उदार और नवीन सिद्धान्तों को जन्म दिया वे इतिहास में दर्ज करने योग्य हैं। उसने हिन्दू-मुसलमानों को निकट लाने का प्रयत्न किया। यद्यपि वह इस दिशा में अधिक सफल नहीं हो सका, परन्तु वह पहला मुस्लिम शासक था जिसने इस आवश्यकता को समझा और उसके लिए ठोस कदम उठाए। उसकी राजपूत एवं धार्मिक नीति हमारे कथन की पुष्टि करती हैं। उसकी न्यायिक प्रणाली भी इस सन्दर्भ में विचारणीय है। अकबर की नीति, भावना और प्रयत्न उसे एक राष्ट्रीय शासक के निकट ला खड़ा करते हैं।

इस प्रकार अकबर का चरित्र उदार और प्रभावशाली था। एक व्यक्ति, एक विजेता, एक शासक, एक राजनीतिज्ञ और एक बादशाह की दृष्टि से उसका जीवन सफल और प्रेरणा प्रदान करने वाला था। इसी कारण अकबर को ‘महान’ की पदवी से विभूषित किया गया है। डॉ० ए०एल० श्रीवास्तव का मानना है कि “अकबर मध्ययुगीन भारत का सबसे महान् सम्राट था और वास्तव में इस देश के सम्पूर्ण इतिहास में सर्वश्रेष्ठ शासकों में से एक था।”



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