InterviewSolution
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                                    अकबर के चारित्रिक गुणों पर प्रकाश डालिए। | 
                            
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Answer»  अकबर ने विभिन्न कार्यक्षेत्रों में अपनी योग्यता एवं प्रतिभा का परिचय दिया। वह एक वीर सैनिक, महान सेनापति, बुद्धिमान शासन-प्रबन्धक, उदार शासक तथा उचित निर्णायक था। वह मनुष्यों का जन्मजात नेता था और इतिहास के शक्तिशाली सम्राटों में गणना किए जाने की क्षमता रखता था। अकबर के व्यक्तित्व एवं चरित्र के विषय में उसके समकालीन इतिहासकारों ने प्रकाश डालने का प्रयास किया है। उसके पुत्र जहाँगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहाँगीरी’ में उसके व्यक्तित्व को बड़े सुन्दर ढंग से चित्रित किया है। जहाँगीर लिखता है कि वह वास्तव में बादशाह था। संक्षेप में अकबर के व्यक्तित्व एवं चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित थीं (i) स्वभाव और रुचियाँ – अकबर विनोदी स्वभाव का था और सदा प्रसन्नचित रहता था। मधुर वचन बोलना उसका स्वभाव था और अहंकार एवं दम्भ से उसे घृणा थी। बच्चों से उसे असीम स्नेह था। उसका क्रोध भी अत्यन्त भयंकर था और क्रोध में वह निर्दयतापूर्ण कार्य भी कर देता था, जैसे आधम खाँ को उसने किले की दीवार पर से दो बार गिराने की आज्ञा दी थी, किन्तु साधारणत: उसका स्वभाव दयालु था तथा उसका क्रोध भी शीघ्र ही शान्त हो जाता था। वह अपने सद्व्यवहार के कारण अपने अमीरों, दरबारियों तथा प्रजाजनों में अत्यन्त लोकप्रिय था।। सम्राट को आखेट में विशेष अभिरुचि थी। वह जंगल में भयंकर-से-भयंकर शेर, चीते तथा हाथी का शिकार करता था। हाथियों के युद्ध तथा पोलो खेलने का उसे अत्यधिक शौक था। अकबर साहसी, धैर्यवान, कठोर परिश्रमी तथा महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। पराजित शत्रु के प्रति वह मानवोचित उदार व्यवहार करने में विश्वास रखता था, किन्तु विरोधियों के प्रति वह उतना ही कठोर भी हो जाता था और उन्हें कभी क्षमा नहीं करता था। (ii) मानसिक गुण – अकबर यद्यपि स्वयं विद्वान नहीं था (सम्भवतः वह निरक्षर था), तथापि उसका व्यवहारिक ज्ञान बहुत बढ़ा-चढ़ा था। उसकी व्यवहारिक बुद्धि का लोहा सभी लोग मानते थे। अकबर साहित्य का बड़ा प्रेमी था तथा दूर-दूर के देशों के विद्वान उसके दरबार में आश्रय प्राप्त करते थे। उसके नवरत्नों में अधिकतर विद्वान व्यक्ति ही सम्मिलित थे। अकबर ने एक विशाल पुस्तकालय का निर्माण करवाया था, जिसमें लगभग 24,000 हस्तलिखित पुस्तकें संगृहीत थीं। तर्क करने में वह इतना कुशल था कि उसको तर्क करते देखकर कोई उसके निरक्षर होने पर विश्वास ही नहीं कर सकता था। (iii) कला प्रेमी – अकबर को केवल साहित्य से ही नहीं, वरन् ललित कलाओं से भी यथेष्ट अनुराग था। सु-लेखन कला, संगीतकला, भवननिर्माण कला, चित्रकला सभी को उसने राजाश्रय प्रदान किया था और उच्चकोटि के कलाकारों को सम्मानित किया था। वह कलपुर्जा का विशेषज्ञ भी था तथा उसने एक ऐसे यन्त्र का निर्माण किया था, जिससे 17 तोप के गोलों को एक साथ दागा जा सकता था। (iv) धार्मिक उदारता – अकबर के चरित्र का सबसे महत्वपूर्ण गुण उसकी धार्मिक उदारता एवं सहिष्णुता थी। उसने सभी धर्मों के साथ दया, सहानुभूति एवं समानता का व्यवहार किया। वह निष्ठावान तथा ईश्वर में विश्वास रखने वाला व्यक्ति था, किन्तु उसके धार्मिक विचार संकीर्ण न होकर व्यापक थे, जिनका अन्तिम परिणाम दीन-ए-इलाही’ के रूप में प्रस्फुटित हुआ था। (v) साहित्य का संरक्षक – अकबर गुणग्राही सम्राट था। वह विद्यानुरागी और साहित्य-प्रेमी बादशाह था। उसने विद्वानों, कवियों, लेखकों और साहित्यकारों को उदारता से आश्रय प्रदान किया। इस राज्याश्रय के परिणामस्वरूप अकबर के शासनकाल में उत्कृष्ट ग्रन्थों की रचना हई। इनमें ऐतिहासिक ग्रन्थ, अनवाद के ग्रन्थ और काव्य-ग्रन्थ है। ऐतिहासिक ग्रन्थों में मुल्ला दाउद की तारीख-ए-अल्फी’, बदायूँनी का मुन्तखब-उत-तवारीख’, निजामुद्दीन अहमद का तबकात-एअकबरी’ तथा शेख अबुल फजल का ‘अकबरनामा’ और ‘आइने-अकबरी’ प्रमुख हैं। उसके काल में संस्कृत, तुर्की, अरबी में लिखे कुछ प्रसिद्ध ग्रन्थों का फारसी में अनुवाद भी किया गया। अकबर के दरबार के ही गिजाली, फैजी, मुहम्मद हुसैन नजीरी, सैयद जमालुद्दीन उर्फी और अब्दुर्रहीम खानखाना ने अनेक काव्य-ग्रन्थों की रचना की। (vi) शारीरिक गठन, वेशभूषा एवं खानपान – अकबर मझले कद का व्यक्ति था और उसका रंग गेहुंआ था। ऊँचा ललाट, लम्बी भुजाएँ, विशाल वक्षस्थल, सीधी नाक के बाईं ओर सौभाग्य का चिह्न (मस्सा), चमकीले नेत्र, सुदृढ़ तथा निरोग शरीर आदि लक्षण उसे एक सम्राट बना देने के लिए पर्याप्त थे। उसके अंग-प्रत्यंग से उसका महान व्यक्तित्व झलकता था। वह केवल मूंछे रखता था तथा दाढ़ी उसने मुंडवा दी थी। उसकी आवाज तेज और कड़कती हुई थी। वह कठोर परिश्रमी था। एक बार वह एक रात और एक दिन में आगरा से अजमेर तक 240 मील घोड़े पर सवार होकर चला गया था। घड़सवारी का उसे विशेष शौक था। वह बहमल्य वस्त्र धारण करता था और जरी के काम के सन्दर रेशमी वस्त्र तथा रत्नाभूषणों से सुसज्जित पगड़ी पहनता था। अकबर फलों का बहुत शौकीन था। उसने अपनी हिन्दू रानियों का दिल न दुखाने के लिए गो-मांस खाना बन्द कर दिया था, परन्तु सप्ताह में दो बार वह मांस-भक्षण करता था। युवावस्था में वह मद्यपान भी करता था किन्तु बाद में उसने इसका परित्याग कर दिया था। वह पीने के लिए गंगाजल का प्रयोग करता था (vii) हँसमुख एवं प्रसन्नचित्त सम्राट – स्वस्थ मनोरंजन अकबर को प्रिय था। फतेहपुर सीकरी में अनेक ऐसे स्थल निर्मित किए गए थे, जहाँ चिन्ताओं से मुक्त होकर सम्राट आमोद-प्रमोद में समय व्यतीत करता था। (viii) प्रजावत्सल सम्राट- अकबर एक प्रजावत्सल सम्राट था। यद्यपि वह निरंकुशता में विश्वास रखता था तथापि उसकी निरंकुशता प्रजाहित पर आधारित थी, स्वेच्छाचारिता पर नहीं। वह दिन-रात प्रजा के हित के कार्यों में व्यस्त रहता था तथा उसके काल में उसकी प्रजा सुखी व समृद्ध थी। वह न्यायप्रिय था और न्याय के समय सबको समान समझता था। योग्यता तथा प्रतिभा का वह आदर करता था तथा उच्च पदों पर वह योग्य व्यक्तियों को ही नियक्त करता था। सारांश यह है कि अकबर बहुमुखी प्रतिभा वाला सम्राट था। वह कठोर परिश्रमी, उत्साही, धैर्यवान, साहसी, सहिष्णु, उदार, प्रजावत्सल, साहित्य एवं कला का पारखी, राजनीतिज्ञ, गुणग्राही, जिज्ञासु तथा दयावान सम्राट था। उसका स्वभाव नम्र एवं शिष्ट, उसकी बुद्धि कुशाग्र, स्मरण शक्ति विलक्षण तथा उसके आदर्श ऊँचे थे। इन्हीं कारणों से भारत के इतिहास में उसे अत्यन्त उच्च स्थान प्राप्त है।  | 
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