1.

अपघटन की परिभाषा दे तथा अपघटन की प्रकिया एवं उसके उत्पादों की व्याख्या कीजिये।

Answer» पारितंत्र में खनिज तत्वों के परिसंचरण हेतु जीवो में संग्रहित जटिल कार्बनिक पदार्थो/मृत का अपघटन क्रिया द्वारा जल तथा सरल अकार्बनिक पदार्थो में टूटना आवश्यक है। ये कार्बनिक पदार्थ जो कि उत्पादन प्रकिया को चलाये रखने के लिए आवश्यक है, अपघटन द्वारा पुनरुद्भवित (Regenerate) होते है। इस प्रक्रिया में कवक, जीवाणुओं अन्य सूक्ष्मविनो के अतिरिक्त छोटे प्राणियों जैसे निमेटोड, कीट, केचुएँ आदि का मुख्य योगदान रहता है। पौधों तथा जन्तुओ के मृत अवशेषों को अपरद (Detritus) कहते है। मृत पौधों तथा परनियो के अवशेष (मल, मूत्र आदि) जो भू-सतह पर पाए जाते है, उन्हें सतही अपरद (Above Ground Detritus) कहते है। मृत जड़ो तथा उनसे जुड़े रोगाणुओं को भूमिगत अपरद (Under ground Detritus) कहते है। अपघटन की प्रक्रिया में निम्नलिखित क्रियाएँ सम्मिलित है-
(i) अपरद का भौतिक विखंडन अपरधारी जीवो द्वारा होता है।
(ii) निक्षालन (Leaching) में मृदा से रिसता जल घुलनशील पदार्थो जैसे-शर्करा, पोषक तत्वों को अपरद से हटा देता है।
(iii) जीवाणुओं तथा कवको द्वारा निर्मुक्त विकरों (Released Enzymes) द्वारा अपचयन।
क्रिया में अकार्बनिक पदार्थो में रूपांतरण होता है। प्रकृति में ये सभी क्रियाएं साथ-साथ चलती रहती है। ह्रूमस निर्मण की प्रक्रिया में अपघटन होता है। अपघटन की क्रिया से मृदा में ह्रूमीफिकेशन (ह्रूमस का निर्माण) तथा खनिजीकरण होता है। ह्रूमस से सूक्ष्मजीवों के जैवभार में वृद्धि होती है तथा भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। अपघटन की प्रक्रिया मुख्यत: जलवायुवीय कारको तथा अपरद के रासायनिक गुणों द्वारा प्रभावित रहती है। आर्द्र जलवायु तथा तापमान की अधिकता अपघटन की प्रक्रिया को बढ़ा देते है। निम्न तापमान में यह प्रक्रिया बहुत धीमी हो जाती है।


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