1.

अपराधों के कारण सम्बन्धी ‘शास्त्रीय सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।

Answer»

शास्त्रीय सिद्धान्त का विकास 18वीं सदी के अन्त में हुआ। इसके प्रमुख समर्थकों में बैकरिया, बेन्थम और फ्यूअरबेक थे। इस सिद्धान्त में विश्वास रखने वाले सुखदायी दर्शन (Hedonistic Philosophy) से प्रभावित थे। इस दर्शन की यह मान्यता है कि प्रत्येक व्यक्ति किसी भी कार्य को करने से पूर्व उससे मिलने वाले सुख व दुःख का हिसाब लगाता है और वही कार्य करता है जिससे उसको सुख मिलता है। एक अपराधी भी अपराध इसलिए करता है कि उसे अपराध करने पर दु:ख की तुलना में सुख अधिक मिलता है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति चोरी करने से पूर्व यह सोचेगा कि चोरी करने पर उसे जो दण्ड मिलेगी, वह चोरी करने पर मिलने वाले सुख की तुलना में निश्चित ही कम होगा, तभी वह चोरी करेगा अन्यथा नहीं। इन विद्वानों का मत है कि अपराध को रोकने के लिए दण्ड इतना दिया जाए कि अपराध से मिलने वाले सुख की तुलना में वह अधिक हो। उनका मत है कि पागल, मूर्ख, बालक एवं वृद्धों को दण्ड नहीं दिया जाना चाहिए।

इस सिद्धान्त को एकांगी होने के कारण स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह सही नहीं है कि हर समय व्यक्ति सुख-दु:ख से प्रेरित होकर ही कोई कार्य करता है। कई बार वह मजबूरी एवं दुःखों से मुक्ति के लिए भी अपराध करता है। अपराध के सामाजिक कारणों की भी इस सिद्धान्त में अवहेलना की गयी है।



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