InterviewSolution
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असहयोग आन्दोलन के स्वरूप, कारण एवं उसके परिणामों पर प्रकाश डालिए।यामहात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया ? इस आन्दोलन के क्या कार्यक्रम थे ? उन्हें यह आन्दोलन क्यों स्थगित करना पड़ा ?यामहात्मा गांधी ने असहयोग आन्दोलन कब चलाया ? इसके कोई दो मुख्य कारण बताइए।यामहात्मा गांधी ने भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए असहयोग और सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाए। इन दोनों आन्दोलनों का परिचय देते हुए बताइए कि क्या ये दोनों अपने उद्देश्यों में सफल रहे ?यामहात्मा गांधी द्वारा चलाए गए तीन आन्दोलनों का वर्णन कीजिए।यामहात्मा गांधी द्वारा चलाए गए किन्हीं दो आन्दोलनों के विषय में संक्षेप में लिखिए।यागांधी जी द्वारा संचालित तीन प्रमुख आन्दोलनों का संक्षेप में उल्लेख कीजिए। उनके अन्तिम आन्दोलन का विस्तार से वर्णन कीजिए।याअसहयोग आन्दोलन के कोई तीन कारण बताइए। |
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Answer» बीसवीं सदी के दूसरे दशक का अन्तिम वर्ष अर्थात् सन् 1920 ई० भारतीय जनता के लिए निराशा और क्षोभ का वर्ष था। जनता उम्मीद लगाये बैठी थी कि प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश हुकूमत उनके लिए कुछ करेगी लेकिन रॉलेट ऐक्ट, जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड और पंजाब में मार्शल लॉ ने उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। भारतीय जनता समझ गयी कि ब्रिटिश हुकूमत से सिवाय दमन के उन्हें और कुछ मिलने वाला नहीं है। ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरोध में सितम्बर, 1920 ई० में असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कलकत्ता में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन बुलाया गया। इसी अधिवेशन में गांधी जी ने ‘असहयोग’ का प्रस्ताव पेश किया। यद्यपि श्रीमती एनीबेसेण्ट ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और कहा कि यह प्रस्ताव भारतीय स्वतन्त्रता के लिए बड़ा धक्का है। इससे समाज और सभ्य जीवन के बीच संघर्ष छिड़ सकता है। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, मदनमोहन मालवीय, चितरंजन दास, विपिनचन्द्र पाल, जिन्ना आदि ने भी प्रारम्भ में विरोध किया परन्तु अली बन्धुओं तथा मोतीलाल नेहरू के समर्थन से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। असहयोग आन्दोलन का स्वरूप महात्मा गांधी अंग्रेजों की दमनकारी नीति से बहुत दुःखी हो उठे थे। फलस्वरूप उन्होंने अगस्त, 1920 ई० को अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन शुरू कर दिया। राजनीति के क्षेत्र में यह अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन महात्मा गांधी का अभिनव प्रयोग था।उन्होंने भारतीयों से यह विनती की कि वे अंग्रेजों द्वारा दी गयी उपाधियों और सरकारी पदों को त्याग दें, अंग्रेजी विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में अपने बच्चों को पढ़ने न भेजें, काउन्सिलो तथा स्थानीय संस्थाओं की सदस्यता त्याग दें और विदेशी वस्तुओं एवं न्यायालयों का बहिष्कार करें। गांधी जी के अहिंसा पर आधारित इस असहयोग आन्दोलन का अच्छा परिणाम निकला। हजारों की संख्या में विद्यार्थियों ने विद्यालयों का परित्याग कर दिया और राष्ट्रीय विद्यापीठों की स्थापना की। लोग खद्दर एवं स्वदेशी वस्तुओं का उपभोग अधिक करने लगे। स्वराज्य का सन्देश अमरबेल की भाँति समस्त भारत में फैल गया। असहयोग आन्दोलन का रचनात्मक कार्यक्रम-सरकारी पदों व उपाधियों का बहिष्कार, विदेशी माल का बहिष्कार आदि कार्यक्रम; असहयोग आन्दोलन के विरोधात्मक कार्यक्रम थे। इसके अतिरिक्त गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक कार्यक्रम की रूपरेखा भी प्रस्तुत की। यह रचनात्मक कार्यक्रम इस प्रकार था—एक करोड़ रुपये का तिलक फण्ड स्थापित करना, एक करोड़ स्वयंसेवकों की भर्ती करना, बीस लाख चर्खा का वितरण करना, राष्ट्रीय शिक्षा की दिशा में प्रयास करना, स्वदेशी माल खरीदने पर बल देना तथा लोक अदालतों की स्थापना करना आन्दोलन के कारण कांग्रेस ने सन् 1920 ई० के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया था। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे – 1. सरकार का किसी भी क्षेत्र में सहयोग न करना। 2. सरकार के कार्यों को ठप करना। 3. प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारत की स्वतन्त्रता के लिए सरकार के द्वारा पहल न करना। 4. सन् 1913-18 ई० के बीच कीमतें दोगुनी हो जाना। 5. दुर्भिक्ष तथा महामारी के कारण लाखों लोगों के मरने पर ब्रिटिश सरकार द्वारा कोई सकारात्मक कदम न उठाना। आन्दोलन के परिणाम कांग्रेस के द्वारा गांधी जी के नेतृत्व में चलाये गये असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित परिणाम हुए 1. इस आन्दोलन से प्रभावित होकर दो-तिहाई मतदाताओं ने विधानमण्डल के चुनावों का बहिष्कार कर दिया। 2. अध्यापकों और विद्यार्थियों ने शिक्षण संस्थाओं में जाना छोड़ दिया। 3. अनेक उत्साही भारतीयों ने अंग्रेजी शासन की सरकारी सेवाओं से त्याग-पत्र दे दिया। 4. स्थान-स्थान पर विदेशी वस्तुओं की होली जला दी गयी। 5. ब्रिटेन के राजकुमार प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर उनका हड़तालों और प्रदर्शनों से स्वागत किया गया। 6. यह आन्दोलन स्वतन्त्रता-प्राप्ति के संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया। महात्मा गांधी द्वारा आन्दोलन वापस लेना – यह आन्दोलन दो वर्षों तक सफलतापूर्वक चलता रहा। अंग्रेजों ने आन्दोलन को कुचलने के लिए कांग्रेस के सक्रिय नेताओं को गांधी जी सहित जेल में डाल दिया। जनता ने इसके विरोध में आन्दोलन किया परन्तु 5 फरवरी, 1922 ई० को भड़की हुई जनता ने चौरी- चौरा, नामक स्थान पर एक पुलिस चौकी में आग लगाकर 22 पुलिस कर्मियों को जिन्दा जला दिया। इस भड़की हुई हिंसा के कारण गांधी जी ने दु:खी होकर यह आन्दोलन वापस ले लिया। |
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