InterviewSolution
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गांधीवादी विचारधारा सत्याग्रह एवं अहिंसात्मक नीति को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» सत्याग्रह का विचार महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में एक नये तरह के आन्दोलन के रास्ते पर चलते हुए वहाँ की नस्लभेदी सरकार से सफलतापूर्वक लोहा लिया था। इस मार्ग को सत्याग्रह कहा गया। सत्याग्रह के विचार में सत्य की शक्ति पर आग्रह’ और सत्य की खोज पर जोर दिया जाता था। इसका अर्थ यह था कि अगर आपको उद्देश्य सच्चा है और संघर्ष अन्याय के खिलाफ है, तो उत्पीड़क से मुकाबला करने के लिए आपको किसी शारीरिक बल की आवश्यकता नहीं है। प्रतिशोध की भावना या आक्रामकता का सहारा लिये बिना सत्याग्रही केवल अहिंसा के सहारे भी अपने संघर्ष में सफल हो सकता है। केवल शत्रु को ही नहीं बल्कि सभी लोगों को हिंसा के जरिए सत्य को स्वीकार करने पर विवश करने की बजाय सच्चाई को देखने और सहज भाव से स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। इस संघर्ष में अन्ततः सत्य की ही जीत होती है। गांधी जी का विश्वास था कि अहिंसा का यह मार्ग सभी भारतीयों को एकता के सूत्र में बाँध सकता है। भारत आने के बाद गांधी जी ने कई स्थानों पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। सन् 1916 ई० मे उन्होंने बिहार के चम्पारण इलाके का दौरा किया और दमनकारी बागान व्यवस्था के खिलाफ किसानों को संघर्ष के लिए प्रेरित किया। सन् 1917 ई० में उन्होंने गुजरात के खेड़ा जिले के किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब हो जाने और प्लेग की महामारी के कारण खेड़ा जिले के किसान लगान चुकाने की हालत में नहीं थे। वे चाहते थे कि लगान वसूली में ढील दी जाए। सन् 1918 ई० में गांधी जी सूती कपड़ा कारखानों के मजदूरों के बीच सत्याग्रह आन्दोलन चलाने अहमदाबाद जा पहुंचे। गांधी जी केवल राजनैतिक स्वतन्त्रता ही नहीं चाहते थे, अपितु जनता की आर्थिक, सामाजिक, आत्मिक उन्नति भी चाहते थे। इस भावना से प्रेरित होकर उन्होंने ग्रामोद्योग संघ, तालीमी संघ (प्राथमिक शिक्षा) तथा हरिजन संघ की स्थापना की। उन्होंने कुटीर उद्योग के विकास पर बल दिया। ‘खादी’ उनके आत्मनिर्भरता एवं आर्थिक कार्यक्रम का प्रतीक था। उन्होंने कहा कि खादी वस्त्र नहीं, एक विचारधारा है। अहिंसा का विचार प्राचीन काल से ही अहिंसा का अनुपालन करना भारतभूमि के वीरों का प्रमुख उद्देश्य रहा है। हमारे देश के मनीषी-गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी, गुरुनानक देव जैसे महर्षियों ने अपनी अमृतवाणी से ही नहीं अपनी कृतियों में भी विश्व को अहिंसा का पाठ पढ़ाया है। आधुनिक युग के महान युगपुरुष, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अहिंसा के पुरजोर समर्थक थे। वे किसी को भी किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचाना चाहते थे। गांधी जी के शब्दों में, “इसमें कोई सन्देह नहीं कि भारत विनाशकारी शस्त्रों के मामले में ब्रिटेन या यूरोप का मुकाबला नहीं कर सकता। अंग्रेज युद्ध के देवता की उपासना करते हैं। वे सब हथियारों से लैस हो सकते हैं, होते जा रहे हैं। भारत में करोड़ों लोग कभी हथियार लेकर नहीं चल सकते। उन्होंने अहिंसा के धर्म को आत्मसात् कर लिया है। |
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