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बादलों से अनुचरों ने स्वर्ण की पोशाक भारी' कवि ने ऐसा क्यों कहा है?​

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आ रही रवि की सवारी।नव-किरण का रथ सजा है,कलि-कुसुम से पथ सजा है,बादलों-से अनुचरों ने स्‍वर्ण की पोशाक धारी।आ रही रवि की सवारी।विहग, बंदी और चारण,गा रही है कीर्ति-गायन,छोड़कर मैदान भागी, तारकों की फ़ौज सारी।आ रही रवि की सवारी।चाहता, उछलूँ विजय कह,पर ठिठकता देखकर यह-रात का राजा खड़ा है, राह में बनकर भिखारी।आ रही रवि की सवारी।



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