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बालक के सुचारु संवेगात्मक विकास के लिए शिक्षक के कर्तव्यों एवं भूमिका का उल्लेख कीजिए।

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बालक के संवेगात्मक विकास में शिक्षक की भूमिका
(Role of Teacher in Emotional Development of Children)

बालक के संवेगात्मक विकास में विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका एवं योगदान होता है। विद्यालय में भी शिक्षक या अध्यापक का सर्वाधिक महत्त्व होता है। बालक के उचित संवेगात्मक विकास के लिए अध्यापक को निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए

⦁    बालकों में उत्तम रुचियाँ उत्पन्न करने के लिए अध्यापक को स्वस्थ सदों का सहारा लेना चाहिए, जैसे-आशा, हर्ष तथा उल्लास आदि।
⦁    अध्यापक का कर्तव्य है कि अवांछित संवेगों; जैसे-भय, क्रोध, घृणा आदि का मार्गान्तीकरण या शोधन कर उन्हें उत्तम कार्यों के लिए प्रेरित करे।
⦁    पाठ्यक्रम निर्धारण में भी बालकों के संवेगों को उचित स्थान दिया जाए।
⦁    अध्यापक को चाहिए कि वह बालकों को संवेगों पर नियन्त्रण रखने का प्रशिक्षण दें।
⦁    वांछनीय संवेगों का यथासम्भव विकास करके बालकों में श्रेष्ठ विचारों, आदर्शों तथा उत्तम आदतों का निर्माण किया जाए।
⦁    बालकों को संवेगों के आधार पर महान् तथा साहित्यिक कार्यों के लिए प्रेरित किया जाए।
⦁    अध्यापक को चाहिए कि बालकों के संवेगों को इस तरीके से परिष्कृत करे कि उनका आचरण समाज के अनुकूल हो सके।
⦁    वांछनीय संवेगों के माध्यम से छात्रों में साहित्य, कला तथा देशभक्ति के प्रति प्रेम उत्पन्न किया जा सकता है।
⦁    संवेग द्वारा अध्यापक बालकों को स्वाध्याय के लिए प्रेरित करके उनके मानसिक विकास में भी योग प्रदान कर सकता है।
⦁    अध्यापक को सदा छात्रों के साथ प्रेम एवं मित्रता का व्यवहार करना चाए।
⦁    अध्यापक को स्वयं संवेगात्मक सन्तुलन बनाये रखना चाहिए संक्षेप में, अध्यापकों का कर्तव्य है कि वे संवेगों के स्वरूप और विकास से भली-भाँति परिचित हों तथा शिक्षण कार्य द्वारा बालक में उचित संवेगों का विकास करें। प्रत्येक अध्यापक को यह ध्यान में रखना चाहिए कि संवेग विचार एवं व्यवहार के प्रमुख चालक अथवा प्रेरित शक्तियाँ हैं और उनका प्रशिक्षण एवं नियन्त्रण आवश्यक है।



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