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शैशवावस्था में होने वाले संवेगात्मक विकास का सामान्य विवरण प्रस्तुत कीजिए।

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शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास
(Emotional Development in Infancy)

शिशु के संवेगात्मक विकास के सम्बन्ध में स्किनर तथा हैरीमन ने लिखा है कि “शिशु का संवेगात्मक व्यवहार क्रमशः अधिक स्पष्ट और निश्चित होता जाता है। उसके व्यवहार के विकास की सामान्य दिशा अनिश्चित और अस्पष्ट से विशिष्ट की ओर होती है।” एक शिशु के संवेगात्मक विकास की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं|

⦁    जन्म के समय शिशु में कोई विशेष संवेग नहीं होता। वह केवल उत्तेजना का अनुभव करता है। शिशु को रोना, चिल्लाना और हाथ-पैर पटकना उत्तेजना का परिणाम है।
⦁    तीन मास का शिशु उत्तेजना के साथ-साथ कष्ट और प्रसन्नता का अनुभव करने लगता है। छ: मास तक वह भय, घृणा तथा क्रोध भी प्रकट करने लग जाता है।
⦁    एक वर्ष का शिशु आनन्द और स्नेहका अनुभव करने लग जाता है। दो वर्ष तक बालक के प्रायः सभी संवेग विकसित हो जाते हैं और पाँच वर्ष की आयु में बालक के संवेगों पर उसके वातावरण का प्रभाव पड़ना आरम्भ हो जाता है।
⦁    शिशु का संवेगात्मक व्यवहार अत्यन्त अस्थिर होता है। यदि रोते हुए बालक को चॉकलेट दी जाए तो वह तुरन्त चुप हो जाता है। आयु के विकास के साथ-साथ शिशु के संवेगात्मक व्यवहार में स्थिरता आती जाती
⦁    शिशु के संवेगों में प्रारम्भ में तीव्रता होती है धीरे-धीरे वह तीव्रता समाप्त हो जाती है।
⦁    शिशु के संवेग प्रारम्भ में अस्पष्ट होते हैं, परन्तु धीरे-धीरे उनमें स्पष्टता आती जाती है।



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