1.

बैंक का कार्य भी दुकान जैसा ही है ।

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यह विधान सही है । जिस प्रकार एक दुकानदार कम कीमत पर माल खरीदकर अधिक कीमत पर माल का विक्रय करता है, ठीक इसी प्रकार बैंक भी द्रव्य की खरीदी एवं बिक्री करता है । बैंक जब बचत को स्वीकार करता है, तब ब्याज देता है, जिसे खरीदी माना जा सकता है । इसी तरह बैंक ऋण (कर्ज) देकर ब्याज लेता है, जिसे विक्रय माना जा सकता है । इस प्रकार बैंक कम ब्याज पर रकम लेकर अधिक ब्याजदर से ऋण प्रदान करते हैं ।



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