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भारत के कपड़ा उद्योग तथा लौह-इस्पात उद्योग का वर्णन कीजिए।याभारत में कपड़ा उद्योग की बदलती स्थिति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।याभारत में बढ़ते हुए उद्योगों की स्थिति पर निम्नलिखित शीर्षकों पर निबन्ध लिखिए(क) वस्त्रोद्योग, (ख) लोहा एवं इस्पात उद्योग, (ग) पेट्रोलियम उद्योग, (घ) रसायन उद्योग।

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कपड़ा उद्योग/वस्त्रोद्योग – कपड़ा उद्योग भारत का सबसे बड़ा, संगठित एवं व्यापक उद्योग है। यह देश के औद्योगिक उत्पादन का 14%, सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 2.4%, कुल विनिर्मित औद्योगिक उत्पादन का 20% व कुल निर्यात के 23% की आपूर्ति करता है। भारत इस क्षेत्र में चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ प्रतियोगिता रखता है।

पंचवर्षीय योजनाएँ इस उद्योग के लिए वरदान सिद्ध हुईं, जिनके फलस्वरूप न केवल इस उद्योग का पर्याप्त विकास हुआ, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भी यह अपनी छाप छोड़ने में सफल रहा। सरकार ने ‘कपड़ा आदेश’, 1993 ई० के माध्यम से इस उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया। 31 मार्च, 1999 ई० को देश में 1,824 सूत/कृत्रिम धागों की मिलें थीं, जिनमें से अधिकतर मिलें महाराष्ट्र, तमिलनाडु तथा गुजरात में हैं। भारत का वस्त्रोद्योग मुख्यतः सूत पर आधारित रहा है तथा देश में कपड़े की खपत का 58% भाग सूत से ही सम्बद्ध है। भारत का वस्त्र उद्योग अब पटसन एवं सूती वस्त्रों के अतिरिक्त कृत्रिम रेशों से पर्याप्त मात्रा में वस्त्र तैयार करता है तथा सिले-सिलाये वस्त्रों को विदेशों को निर्यात कर रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में भारत के सिले वस्त्रों की बड़ी माँग है तथा उसे इससे १ 51 हजार करोड़ से भी अधिक मूल्य की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।

लोहा एवं इस्पात उद्योग – आज भारत विश्व का नौवाँ सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक देश है। इस उद्योग में । 90,000 करोड़ की पूँजी लगी हुई है और पाँच लाख से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला हुआ है। बड़े पैमाने पर इस्पात का उत्पादन 1907 ई० में जमशेदपुर में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी (TISCO) की स्थापना के साथ आरम्भ हुआ। सन् 1974 में सरकार ने स्टील अथॉरिटी ऑफ इण्डिया लि० (SAIL) की स्थापना की।

दूसरी पंचवर्षीय योजना में 10-10 लाख टन इस्पात पिण्डों की क्षमता की सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाएँ भिलाई (छत्तीसगढ़) में सोवियत संघ के सहयोग से, दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल) में ग्रेट ब्रिटेन के सहयोग से और राउरकेला (ओडिशा) में जर्मनी के सहयोग से स्थापित की गयी।

तीसरी पंचवर्षीय योजना में सोवियत संघ के सहयोग से बोकारो (बिहार) में एक और इस्पात कारखाने की स्थापना की गयी। विगत कुछ वर्षों में इस्पात उद्योग के उत्पादन का स्वरूप सन्तोषप्रद रहा है। वर्ष 2002-03 में इस्पात की खपत 29.01 मिलियन टन थी, जब कि वर्ष 2001-02 में यह 27.35 मिलियन टन थी। वर्ष 2001-02 में तैयार इस्पात का निर्यात 1.27 मिलियन टन था जो वर्ष 2002-03 में 1.5 मिलियन टन हो गया। लोहे और इस्पात से बनी सभी वस्तुओं के आयात और निर्यात की वर्तमान में पूरी छूट है। वर्ष 2001-02 में परिष्कृत इस्पात का निर्यात 2.98 मिलियन टन था, जो वर्ष 2002-03 में बढ़कर 4.2 मिलियन टन हो गया। यह स्थिति लोहे और इस्पात उद्योग में भारत की परिवर्तित होती स्थिति को प्रदर्शित करती है।

पेट्रोलियम उद्योग – पेट्रोलियम के सम्बन्ध में भारत की स्थिति अब पहले की अपेक्षा अच्छी हुई है। द्वितीय पंचवर्षीय योजना के आरम्भ तक देश में केवल डिगबोई (असोम) के आस-पास के क्षेत्र में तेल निकाला जाता था। अब देश के कई भागों से तेल निकाला जाने लगा है। भारत के तेल-क्षेत्र असोम, त्रिपुरा, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, मुम्बई, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल के तटीय प्रदेशों तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह में स्थित हैं। देश में तेल का कुल भण्डार 13 करोड़ टन अनुमानित किया गया है।

वर्ष 1950-51 में देश में कच्चे तेल का उत्पादन केवल 2.5 लाख टन था, जब कि वर्ष 2002-03 की अवधि में उत्पादन 33.05 मिलियन टन रहा। खाद्यान्न व दूध के उत्पादन में आत्मनिर्भरता के पश्चात् अब खनिज तेल की दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ने के लिए कृष्ण क्रान्ति (Black Revolution) की सरकार की योजना है। इसके लिए एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाकर पेट्रोल में इसका मिश्रण 10% तक बढ़ाने तथा बायो-डीजल का उत्पादन करने की सरकार की योजना है। यह स्थिति पेट्रोलियम उद्योग में भारत की परिवर्तित होती स्थिति को प्रदर्शित करती है।

उल्लेखनीय है कि फरवरी, 2003 ई० में देश में कच्चे तेल के दो विशाल भण्डारों की खोज अलग-अलग कम्पनियों ने की थी। ये भण्डार बाड़मेर (राजस्थान) जिले में व मुम्बई के तटवर्ती क्षेत्र में खोजे गये हैं। कृष्णा-गोदावरी बेसिन में प्राकृतिक गैस के बड़े भण्डार की खोज के पश्चात् रिलायन्स इण्डस्ट्रीज लि० ने।

प्रकृतिक गैस के एक और भण्डार की खोज करने में सफलता प्राप्त की है। यह खोज मध्य प्रदेश में शहडोल. * कोलबेड मीथेन के सुहागपुर पश्चिम व सुहागपुर पूर्व अन्वेषण खण्ड में की गयी है।

रसायन उद्योग-रसायन उद्योग में मुख्य रसायन तथा इसके उत्पादों, पेट्रोकेमिकल्स, फर्टिलाइजर्स, पेंट तथा वार्निश, गैस, साबुन, इत्र, प्रसाधन सामग्री और फार्मस्युटिकल्स को शामिल किया जाता है। रसायन 5 के उत्पादन विभिन्न उद्योगों में प्रयुक्त होते हैं। इस प्रकार इस उद्योग का व्यावसायिक महत्त्व बहुत अ िहै। भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास में भी इसका काफी योगदान है। देश की जी०डी०पी० में इसका योगदान 3 प्रतिशत है। 11वीं योजना में पेट्रोरसायन और रसायनों की वृद्धि 12.6 प्रतिशत और 8 प्रतिशत होने का अनुमान है। संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूनिडो) के अनुसार भारतीय रसायन उद्योग का विश्व में 6वाँ और एशिया में तीसरा स्थान है। 2010 में रसायन उद्योग 108.4 बिलियन डालर का रहा। रसायन उद्योग भारत के प्राचीनतम उद्योगों में से एक है जो देश के औद्योगिक एवं आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान करता है।

यह अत्यन्त विज्ञान आधारित है और विभिन्न लक्षित उत्पादों जैसे वस्त्र, कागज, पेंट एवं वार्निश, चमड़ा आदि के लिए मूल्यवान रसायन उपलब्ध कराता है, जिनकी जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यकता होती है। भारतीय रसायन उद्योग भारत की औद्योगिक एवं कृषिगत विकास के रीढ़ का निर्माण करता है और अनुप्रवाही उद्योगों के लिए घटकों को प्रदान करता है। भारतीय रसायन उद्योग में लघु एवं वृहद् स्तर की इकाइयाँ दोनों ही शामिल हैं। अस्सी के दशक के मध्य में लघु क्षेत्र को प्रदान किए गए वित्तीय रियायतों ने लघु स्तरीय उद्योगों (एसएसआई) के क्षेत्र में वृहद संख्या में इकाइयों को स्थापित करने के लिए बाध्य किया। वर्तमान में, भारतीय रसायन उद्योग क्रमिक रूप से व्यापक ग्राहकोन्मुखीकरण की ओर बढ़ रहा है। भारत को आधारभूत कच्चे माल की प्रचुरता का लाभ है, इसे वैश्विक प्रतियोगिता का सामना करने और निर्यात में हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए तकनीकी सेवाओं और व्यापारिक क्षमताओं का निर्माण करना होगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था नब्बे के दशक के प्रारंभ तक एक संरक्षित अर्थव्यवस्था थी। रसायन उद्योग द्वारा बौद्धिक संपदा के सृजन के लिए व्यापक स्तर के शोध एवं विकास के लिए बहुत कम कार्य किए गए थे। इसलिए उद्योग को अंतर्राष्ट्रीय रसायन उद्योग की प्रतियोगिता का सफलतापूर्वक मुकाबला करने के लिए शोध एवं विकास में व्यापक निवेश करना होगा। विभिन्न वैज्ञानिक संस्थानों के साथ, देश की शक्ति दूसरे उच्च स्तरीय प्रशिक्षित वैज्ञानिक जनशक्ति पर निर्भर रहती है। भारत वृहद् संख्या में उत्कृष्ट एवं विशेषीकृत रसायनों का भी उत्पादन करता है जिनके विशिष्ट प्रयोग हैं जिनका खाद्य संयोजक, चमड़ा रंगाई, बहुलक संयोजक, रबड़ उद्योग में प्रति-उपयामक आदि में व्यापक प्रयोग होता है। रसायन क्षेत्र में, 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति है। रासायनिक उत्पादों, साथ-ही-साथ कार्बनिक/अकार्बनिक रंग-सामग्री और कीटनाशक के ज्यादातर निर्माता लाइसेंसमुक्त हैं। उद्यमियों को केवल आई ई एम को औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के नियमों के अनुकूल काम करना होता है। बशर्ते कि स्थानीयता दृष्टिकोण लागू न हो। केवल निम्नलिखित वस्तुएँ ही अपनी खतरनाक प्रकृति के कारण आवश्यक लाइसेंसिंग सूची में शामिल हैं

  • हाइड्रोरासायनिक अम्ल एवं इसके संजात
  • फॉस्जीन एवं इसके संजात तथा
  • हाइड्रोकार्बन के आइसोसाइनेट्स एवं डीआइसोसाइनेट्स।


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