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भारत के विभिन्न भागों में उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से ‘विविधता में एकता’ के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? तर्क दीजिए।

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हाँ, मैं इस कथन से सहमत हूँ कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों में विविधता . में एकता के सिद्धान्त की अभिव्यक्ति होती है क्योंकि देश के विभिन्न क्षेत्रों से विभिन्न प्रकार की माँगें उठीं।
तमिलनाडु में जहाँ हिन्दी भाषा के विरोध और अंग्रेजी भाषा को राष्ट्रभाषा के रूप में बनाए रखने की माँग उठी, तो असम में विदेशियों को असम से बाहर निकालने की माँग उठी, नागालैण्ड और मिजोरम में अलगाववाद की मांग उठी तो आन्ध्र प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व अन्य राज्यों में, भाषा के आधार पर अलग राज्य बनाने की माँग उठी।
इसी तरह उत्तराखण्ड, छत्तीसगढ़ तथा झारखण्ड क्षेत्रों में प्रशासनिक सुविधा तथा आदिवासियों के हितों की रक्षा हेतु अलग राज्य बनाने के आन्दोलन हुए। अभी भी विभिन्न क्षेत्रों से भिन्न-भिन्न प्रकार की मांग उठ रही हैं जिनका मुख्य आधार क्षेत्रीय पिछड़ापन है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत के विभिन्न भागों से उठने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता के दर्शन होते हैं। भारत सरकार ने इन मांगों के निपटारे के लिए लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण अपनाते हुए एकता का परिचय दिया है। लोकतन्त्र में क्षेत्रीय आकांक्षाओं की राजनीतिक अभिव्यक्ति की अनुमति होती है और लोकतन्त्र क्षेत्रीयता को राष्ट्र विरोधी नहीं मानता। लोकतान्त्रिक राजनीति में क्षेत्रीय मुद्दों और समस्याओं पर नीति-निर्माण की प्रक्रिया में समुचित ध्यान दिया जाता है। अतः स्पष्ट है कि देश में सामने आने वाली क्षेत्रीय मांगों से विविधता में एकता की अभिव्यक्ति होती है।



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