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भारत में साहूकारों व महाजनों की वित्त व्यवस्था के दोष बताइए।

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भारत में पारम्परिक वित्त व्यवस्था के दोष साहूकारों व महाजनों की पारम्परिक कृषि वित्त व्यवस्था के निम्नलिखित दोष रहे हैं

⦁    साहूकार की कार्य-पद्धति लोचदार होती है और वह समय, परिस्थिति तथा व्यक्ति के अनुसार उनमें परिवर्तन करता रहता है।

⦁    साहूकार अपने ऋणों पर ब्याज की उच्च दर वसूल करता है।

⦁    साहूकार मूलधन देते समय ही पूरे वर्ष का ब्याज अग्रिम रूप में काट लेते हैं और इसकी कोई | रसीद भी नहीं देते हैं।

⦁    अनेक साहूकार ऋण देते समय कोरे कागजों पर हस्ताक्षर या अँगूठे की निशानी ले लेते हैं और बाद में उनमें अधिक रकम भर लेते हैं।

⦁    बहुत-से स्थानों पर ऋण देते समय ऋण की रकम में से अनेक प्रकार के खर्चे काट लेते हैं। कभी-कभी यह रकम 5% से 10% तक हो जाती है।

⦁    साहूकार कृषकों को अनुत्पादक कार्यों के लिए ऋण देकर उन्हें फिजूलखर्ची बना देते हैं।

⦁    साहूकार समय-समय पर हिसाब-किताब में भी गड़बड़ करती रहती है।

⦁    साहूकार कृषकों को ऋण देने के बाद उन्हें अपनी फसल कम कीमत पर बेचने के लिए विवश करते हैं।



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