InterviewSolution
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भारत में शिक्षा के बदलते स्वरूप का वर्णन निम्न शीर्षकों में कीजिए(क) प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा, (ख) उच्च शिक्षा, (ग) तकनीकी शिक्षा।याभारत में शिक्षा के प्रसार पर स्वातन्त्र्योत्तर काल शिक्षा के वर्तमान स्वरूप पर एक लेख लिखिए। |
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Answer» (क) प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा भारत में 14 साल की उम्र तक के सभी बच्चों को नि:शुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना सांवैधानिक प्रतिबद्धता है। देश की संसद ने वर्ष 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ पारित किया है जिसके द्वारा 6 से 14 साल के सभी बच्चों के लिए शिक्षा एक मौलिक अधिकार हो गई है। हालांकि देश में अभी भी आधारभूत शिक्षा को सार्वभौम नहीं बनाया जा सका है। इसका अर्थ है–बच्चों का स्कूलों में सौ फीसदी नामांकन और स्कूलिंग सुविधाओं से लैस हर अधिवास में उनकी संख्या को बरकरार रखना। इसी कमी को पूरा करने हेतु सरकार ने वर्ष 2001 में सर्व शिक्षा अभियान योजना की शुरुआत की, जो अपनी तरह की दुनिया में सबसे बड़ी योजना है। सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में सूचना व संचार प्रौद्योगिकी शिक्षा क्षेत्र में वंचित और सम्पन्न समुदायों, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, के बीच की दूरी पाटने का कार्य कर रहा है। भारत विकास प्रवेशद्वार ने प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में भारत में मौलिक शिक्षा के सार्वभौमिकरण हेतु प्रचुर सामग्रियों को उपलब्ध कराकर छात्रों तथा शिक्षकों की क्षमता बढ़ाने की पहल की है। माध्यमिक शिक्षा प्रारम्भिक शिक्षा को सर्वव्यापी करना एक संवैधानिक अधिदेश बन गया है इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है। कि इस अभिकल्पना को माध्यमिक शिक्षा के सर्वव्यापी बनाने की ओर बढ़ाने की आवश्यकता है, जिसे कि बड़ी संख्या में विकसित देशों तथा कई विकासशील देशों में पहले ही हासिल कर लिया गया है। सभी युवा व्यक्तियों को अच्छी गुणवत्तायुक्त माध्यमिक शिक्षा सुलभ कराने तथा कम मूल्य पर उपलब्ध कराने की । केन्द्र सरकार की वचनबद्धता के भाग के रूप में भारत सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान माध्यमिक स्तर पर शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने तथा गुणवत्ता-सुधार हेतु राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (आर०एम०एस०ए०) नामक एक केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम शुरू की गई। इस स्कीम का उद्देश्य प्रत्येक आवास से उचित दूरी के भीतर माध्यमिक स्कूल उपलब्ध कराकर 5 वर्ष के भीतर कक्षा में नामांकन हेतु नामांकन अनुपात को 75 प्रतिशत करने, सभी माध्यमिक स्कूलों द्वारा निर्धारित मानदण्डों के अनुपालन को | सुनिश्चित करके माध्यमिक स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, महिला-पुरुष सामाजिक-आर्थिक तथा विकलांगता-आधारित बाधाओं को दूर करना वर्ष 2017 अर्थात् 12वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक माध्यमिक स्तर की शिक्षा को सर्वव्यापी बनाने और वर्ष 2020 तक सभी बच्चों को विद्यालयों में बनाए रखना है। मुख्य रूप से भौतिक लक्ष्यों में 5 वर्षों के भीतर कक्षा IX.X हेतु नामांकन अनुपात को वर्ष 2005-06 के 52.26 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 प्रतिशत करना, वर्ष 2011-12 तक अनुमानित 32.20 लाख : छात्रों के अतिरिक्त नामांकन हेतु सुविधाएँ उपलब्ध कराना, 44,000 मौजूदा माध्यमिक स्कूलों का सुदृढ़ीकरण, 11000 नए माध्यमिक स्कूल खोलना, 1.79 लाख अतिरिक्त शिक्षकों की नियुक्ति तथा 80,500 अतिरिक्त कक्षा-कक्षों का निर्माण शामिल था। 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान परियोजना लागत का 75 प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा वहन करने तथा शेष 25 प्रतिशत का वहन राज्य सरकारों द्वारा किये जाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए हिस्सेदारी पैटर्न 50 : 50 होगा। 11वीं तथा 12वीं योजनाओं दोनों के लिए पूर्वोत्तर राज्य हेतु निधियम पैटर्न 90 : 10 रखा गया। 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान इस स्कीम हेतु 20,120 करोड़ आबंटित किए गए थे। वर्ष 2010-11, जो इस कार्यक्रम का दूसरा वर्ष था, में 34 राज्यों/संघराज्य क्षेत्रों से वार्षिक योजना प्रस्ताव प्राप्त हुए। (ख) उच्च शिक्षा आजादी के बाद के वर्षों में उच्च शिक्षा क्षेत्र की संस्थागत क्षमता में अत्यधिक वृद्धि हुई है। वर्ष 1950 में विश्वविद्यालयों/विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थाओं की संख्या 27 थी जो 18 गुणा बढ़कर वर्ष 2009 में 504 हो गई है। इस क्षेत्र में 42 केन्द्रीय विश्वविद्यालय, 243 राज्य विश्वविद्यालय, 53 राज्य निजी विश्वविद्यालय, 130 समविश्वविद्यालय, 33 राष्ट्रीय महत्त्व की संस्थाएँ (संसद के अधिनियमों के तहत स्थापित) और पाँच संस्थाएँ (विभिन्न राज्य विधानों के अंतर्गत स्थापित) शामिल हैं। कॉलेजों की संख्या में भी कई गुणा वृद्धि दर्ज की गई है जो 1950 में केवल 578 थे, 2011 में 30,000 से भी अधिक हो गए हैं। उच्चतर शिक्षा क्षेत्र में हुई वृद्धि में विश्वविद्यालय बहुत तेजी से बढ़े हैं जो अध्ययन का सर्वोच्च स्तर है। यूनिवर्सिटी शब्द लैटिन के “युनिवर्सिटाज’ से लिया गया है, जिसका आशय है, “छात्रों और शिक्षकों के बीच विशेष समझौते।’ इस लैटिन शब्द का अभिप्राय अध्ययन की संस्थाओं से है जो अपने छात्रों को डिग्रियाँ प्रदान करते हैं। वर्तमान में विश्वविद्यालय प्राचीन संस्थाओं से ज्यादा अलग नहीं हैं, इस बात को छोड़कर कि आजकल विश्वविद्यालये पढ़ाए गए विषयों और छात्रों दोनों के मामले में अपेक्षाकृत बड़े हैं। भारत में विश्वविद्यालय का आशय किसी केन्द्रीय अधिनियम, किसी प्रांतीय अधिनियम अथवा किसी राज्य अधिनियम के द्वारा स्थापित अथवा निगमित विश्वविद्यालय से है जिसमें इस अधिनियम के तहत इस संबंध में बनाए गए विनियमों के अनुसार उस सम्बद्ध विश्वविद्यालय के परामर्श से विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थाएँ शामिल हैं। प्रतिवर्ष देश-विदेश के लाखों छात्र मुख्यतः अपनी स्नातकोत्तर की पढ़ाई के लिए इनमें दाखिला लेते हैं जबकि लाखों छात्र बाहरी दुनिया में कार्य करने के लिए इन संस्थाओं को छोड़ते हैं। उच्च शिक्षा केन्द्र और राज्य दोनों की साझा जिम्मेदारी है। संस्थाओं में मानकों का समन्वय और निर्धारण केन्द्र सरकार का संवैधानिक दायित्व है। केन्द्र सरकार यूजीसी को अनुदान देती है और देश में केन्द्रीय विश्वविद्यालयों की स्थापना करती है। केन्द्र सरकार ही यूजीसी की सिफारिश पर शैक्षिक संस्थाओं को समविश्वविद्यालय घोषित करती है। वर्तमान में, विश्वविद्यालयों/विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थाओं के मुख्य घटक हैं—केन्द्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, समविश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तरीय संस्थाएँ। इनका वर्णन नीचे दिया गया है
राज्य विश्वविद्यालय :
निजी विश्वविद्यालय :
समविश्वविद्यालय :
राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था :
राज्य विधानमंडल अधिनियम :
(ग) तकनीकी शिक्षा भारत में तकनीकी शिक्षा का संचालन अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (All India Council for Technical Education/AICTE) द्वारा किया जाता है। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् भारत में नई तकनीकी संस्थाएँ शुरू करने, नए पाठ्यक्रम शुरू करने और तकनीकी संस्थाओं में प्रवेश-क्षमता में फेरबदल करने हेतु अनुमोदन देती है। यह ऐसी संस्थाओं के लिए मानदंड भी निर्धारित करती है। इसकी स्थापना 1945 में सलाहकार निकाय के रूप में की गई थी और बाद में संसद के अधिनियम द्वारा 1987 में इसे सांविधिक दर्जा प्रदान किया गया। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है, जहाँ इसके अध्यक्ष, उपाध्यक्ष एवं सचिव के कार्यालय हैं। कोलकाता, चेन्नई, कानपुर, मुम्बई, चण्डीगढ़, भोपाल और बंगलुरु में इसके 7 क्षेत्रीय कार्यालय स्थित हैं। हैदराबाद में एक नया क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किया गया है। यह तकनीकी संस्थाओं के प्रत्यायन या कार्यक्रमों के माध्यम से तकनीकी शिक्षा के गुणवत्ता विकास को भी सुनिश्चित करती है। अपनी विनियामक भूमिका के अलावा अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् की एक बढ़ावा देने की भी भूमिका है जिसे यह तकनीकी संस्थाओं को अनुदान देकर महिलाओं, विकलांगों और समाज के कमजोर वर्गों के लिए तकनीकी शिक्षा का विकास, नवाचारी, संकाय, अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देने संबंधी योजनाओं के माध्यम से कार्यान्वित करती है। परिषद् 21 सदस्यों वाली कार्यकारी समिति के माध्यम से अपना कार्य करती है। 10 सांविधिक अध्ययन बोर्ड द्वारा सहायता प्राप्त है जो नामतः इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी में अवर स्नातक अध्ययन, इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी में स्नातकोत्तर और अनुसंधान, प्रबंध अध्ययन, व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, फार्मास्युटिकल शिक्षा, वास्तुशास्त्र, होटल प्रबंधन और कैटरिंग प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, टाउन एवं कंट्री पलैनिंग परिषद् की सहायता करते हैं। |
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