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भाव स्पष्ट कीजिए-उड़ा दिए थे मैंने अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे।

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इसका भाव है कि सन् 1857 की तोप, जो आज भी कंपनी बाग के प्रवेश द्वार पर रखी हुई है, उसके सामने चाहे देशभक्त आया, चाहे देशद्रोही, उसने अपने जमाने के बड़े-बड़े वीर अंग्रेज़ों को भी परास्त कर दिया था, उनकी धज्जियाँ उड़ा दी थीं।



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