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बिस्मिल की आत्मिक, धार्मिक और सामाजिक उन्नति में उनकी माँ का क्या योगदान रहा ?

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बिस्मिल आरंभ में बड़े धृष्ट बालक थे। पिता और दादी से उनकी कभी नहीं बनती थी। उनमें संस्कार भरे तो उनकी मां ने। माँ : के उपदेश बिस्मिल के लिए देववाणी के समान थे। माँ ने ही उनमें दया और सेवा की भावना जगाई। मां के प्रोत्साहन से ही बिस्मिल में धर्म : के प्रति रुचि उत्पन्न हुई।

कभी स्नेह से और कभी हल्की ताड़ना से मा ने उनमें तरह-तरह के सुधार किए। मां ने पुत्र को आर्यसमाज में प्रवेश करने का समर्थन किया। इतना ही नहीं समाजसेवा की समितियों में भी पुत्र को कार्य करने की प्रेरणा दी। लखनऊ काँग्रेस में शामिल होने के लिए माँ ने बिस्मिल को खर्च दिया। इस प्रकार यह कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं कि बिस्मिल को बिस्मिल उनकी माँ ने बनाया। माँ के कारण ही बिस्मिल की आत्मिक, धार्मिक और सामाजिक उन्नति में गणना हो सकी।



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