1.

चिन्तन की प्रक्रिया पर प्रबल संवेगों का क्या प्रभाव पड़ता है।

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प्रबल संवेगावस्था में व्यक्ति की चिन्तन की प्रक्रिया तटस्थ नहीं रह पाती है। प्रबल संवेगों की दशा में व्यक्ति शान्त एवं सन्तुलित नहीं रह पाता तथा इस स्थिति में वह प्रामाणिक चिन्तन नहीं कर पाता है। संवेगावस्था में व्यक्ति उत्तेजित हो उठता है तथा उत्तेजना की स्थिति में वैध चिन्तन प्रायः नहीं हो पाता है। उदाहरण के लिए-घृणा से ग्रस्त व्यक्ति सम्बन्धित विषय अथवा व्यक्ति के सन्दर्भ में तटस्थ चिन्तन कर ही नहीं सकता।



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