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दादा जी की क्या आकांक्षा थी?

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दादा जी अपने परिवार को एक बड़े बरगद के पेड़ के समान मानते थे। अगर पेड़ की एक भी डाली टूट कर अलग हो जाए तो फिर चाहे उसे कितना भी पानी दो उसमें सरसता नहीं आ सकती। जब उन्हें पता चलता है कि परेश अलग होनेवाला है तो वे परिवार के सभी सदस्यों को बुलाकर समझाते हैं कि कोई भी छोटी बहू का अनादर न करे। दादाजी की आकांक्षा थी कि वृक्ष की सभी डालियाँ साथ-साथ बढ़ें, फलें फूलें, जीवन की सुखद शीतल वायु के परस से झूमें और सरसाएँ। पेड़ से अलग होनेवाली डाली की कल्पना उनके अंदर कंपन पैदा कर देती थी। वे परिवार को वटवृक्ष के समान देखना चाहते थे।



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