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धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी ।खेलत खात फिरै अँगनी, पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी ॥वा छबि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कला निज कोटी ।काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी ॥

Answer»

[ बनी = सुशोभित। पैंजनी = पायजेब। पीरी = पीला। कछोटी = कच्छा। सजनी = सखी।] |

प्रसंग–इसे पद्य में कवि ने बालक कृष्ण के मोहक रूप का चित्रण किया है। श्रीकृष्ण के सौन्दर्य को देखकर एक गोपी अपनी सखी से उनके सौन्दर्य का वर्णन करती है।

व्याख्या–हे सखी! श्यामवर्ण के कृष्ण धूल से धूसरित हैं और अत्यधिक शोभायमान हो रहे हैं। वैसे ही उनके सिर पर सुन्दर चोटी सुशोभित हो रही है। वे खेलते और खाते हुए अपने घर के आँगन में विचरण कर रहे हैं। उनके पैरों में पायल बज रही है और  वे पीले रंग की छोटी-सी धोती पहने हुए हैं। रसखान कवि कहते हैं कि उनके उस सौन्दर्य को देखकर कामदेव भी उन पर अपनी कोटि-कोटि कलाओं को न्योछावर करता है। हे सखी! उस कौवे के भाग्य का क्या कहना, जो कृष्ण के हाथ से मक्खन और रोटी छीनकर ले गया। भाव यह है कि कृष्ण की जूठी मक्खन-रोटी खाने का अवसर जिसको प्राप्त हो गया, वह धन्य है।

काव्यगत सौन्दर्य-
⦁    प्रस्तुत छन्द में श्रीकृष्ण के बाल-सौन्दर्य का बड़ा ही मोहक वर्णन ” किया गया है।
⦁    भाषा-ब्रज
⦁    शैली—चित्रात्मक और मुक्तक
⦁    रसवात्सल्य और भक्ति।
⦁    छन्द-सवैया।
⦁    अलंकार-पद्य में सर्वत्र अनुप्रास, ‘वारत काम कला निज कोटी’ में प्रतीप।
⦁    गुण-माधुर्य।
⦁    भावसाम्य-गोस्वामी जी ने भी श्रीराम की धूल से भरी बाल छवि का ऐसा ही चित्र खींचा है-अति सुन्दर सोहत धूरि भरे, छवि भूरि अनंग की दूरि धरें।



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