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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएशक्ति के विद्युत्कण जो व्यस्तविकल बिखरे हैं, हो निरुपाय;समन्वय उसका करे समस्त ।विजयिनी मानवता हो जाय।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को कौन-सी बात बताई है?(iv) समस्त सृष्टि की रचना किनसे हुई है?(v) श्रद्धा मनु को किस प्रकार मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित करती हैं?

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(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री जयशंकर प्रसाद के ‘कामायनी’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘श्रद्धा-मनु’ शीर्षक कविता से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 श्रद्धा-मनु।।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-श्रद्धा मनु से कहती है कि जीवन के प्रति हताशा और निराशा को त्यागकर आपको लोक-मंगल के कार्यों में लगना चाहिए। इसके लिए सबसे महत्त्वपूर्ण और मुख्य कार्य संसार की विभिन्न शक्तियों में पारस्परिक समन्वय स्थापित करना है। विश्व की विद्युत्-कणों के समान जो भी करोड़ों-करोड़ शक्तियाँ हैं, वे सब बिखरी पड़ी हैं, जिस कारण जीवन में उनका कोई भी उपयोग नहीं हो पा रहा है। उन सब शक्तियों को एकत्रित कीजिए और उनमें आया समन्वय स्थापित कीजिए, जिससे उन शक्तियों का अधिक-से-अधिक उपयोग हो सके। इसी में मानवता का कल्याण निहित है। यदि आप यह समन्वय स्थापित करने में सफल हो गए तो सर्वत्र मानवता का साम्राज्य स्थापित हो जाएगा।
(iii) इन पंक्तियों में श्रद्धा ने मनु को मानवता की विजय का उपाय बताया है।
(iv) समस्त सृष्टि की रचना शक्तिशाली विद्युत्-कणों से हुई है।
(v) श्रद्धा ने मनु को बिखरी पड़ी समस्त शक्तियों को एकत्रित करके उनके उपयोग द्वारा मानवता का साम्राज्य स्थापित करने के लिए प्रेरित किया है।



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