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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएबीती विभावरी जाग री ।अम्बर-पनघट में डुबो रही-तारा-घट ऊषा-नागरी ।खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा,किसलय को अंचल डोल रहा,लो यह लतिका भी भर लायी—मधु-मुकुल नवल रस-गागरी ।अधरों में राग अमन्द पिये,अलकों में मलयज बन्द किये–तू अब तक सोयी है आली !आँखों में भरे विहाग री।।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में किस समय का सुन्दर वर्णन किया गया है?(iv) कौन आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रहा है? ।(v) ‘खग-कुल कुल-कुल सा बोल रहा’ पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

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(i) प्रस्तुत गीत महाकवि श्री जयशंकर प्रसाद के ‘लहर’ नामक कविता-संग्रह से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘गीत’ शीर्षक रचना से उद्धत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 गीत।
कवि का नाम-जयशंकर प्रसाद।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-इस गीत में मानवीकरण द्वारा प्रात:काल की शोभा का सुन्दर चित्रण किया गया है। एक सखी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! रात बीत चुकी है। अब तू उठ। आकाशरूपी पनघट पर ऊषारूपी चतुर नारी तारारूपी घड़ा डुबो रही है; अर्थात् तारे एक-एक करके छिपते चले जा रहे हैं।
(iii) प्रस्तुत पंक्तियों में प्रात:काल की शोभा का सुन्दर वर्णन किया गया है।
(iv) उषारूपी चतुर नारी आकाशरूपी पनघट पर तारारूपी घड़े को डुबो रही है।
(v) अलंकार-अनुप्रास, रूपक।



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