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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएकहते आते थे यही अभी नरदेही,‘माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।’अब कहें सभी यह हाय ! विरुद्ध विधाता-‘है पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता।’बस मैंने इसका बाह्य-मात्र ही देखा,दृढ़ हृदय न देखा, मृदुल गात्र ही देखा ।।परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा !युग-युग तक चलती रहे कठोर कहानी-‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) पद्यांश के अनुसार, आज तक लोग क्या कहते आए हैं?(iv) किसने प्रायश्चित्त किया है कि मैंने पुत्र का कोमल शरीर ही देखा, उसका दृढ़ हृदय नहीं देखा?(v) इन पंक्तियों में कैकेयी को किस बात पर पश्चात्ताप हुआ है?

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(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक नाम-
 कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम-मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कैकेयी श्रीराम से कहती है कि आज तक मनुष्य यही कहते आये थे कि पुत्र कितना ही दुष्ट क्यों न हो, परन्तु माता उसके प्रति कभी भी दुर्भाव नहीं रखती है। अब तो मेरे चरित्र के कारण लोगों का इस उक्ति पर से विश्वास हट जाएगा और संसार के लोग यही कहा करेंगे कि माता दुष्टतापूर्ण व्यवहार कर सकती है, परन्तु पुत्र कभी कुपुत्र नहीं हो सकता।
(iii) पद्यांश के अनुसार, आज तक लोग यही कहते आए हैं कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती।
(iv) कैकेयी ने प्रायश्चित्त किया है कि मैंने पुत्र का कोमल शरीर हो देखा उसका दृढ़-हृदय नहीं देखा।
(v) इन पंक्तियों में कैकेयी को अपने ऊपर लगने वाले कलंक और पुत्र की प्रवृत्ति को न पहचान पाने का पश्चात्ताप हुआ है।



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