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दिए गए पद्यांशों को फ्ढ़कर उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिएमुझको यह प्यारा और इसे तुम प्यारे,मेरे दुगुने प्रिय, रहो न मुझसे न्यारे ।मैं इसे न जानें, किन्तु जानते हो तुम,अपने से पहले इसे मानते हो तुम ।।तुम भ्राताओं का प्रेम परस्पर जैसा,यदि वह सब पर यों प्रकट हुआ है वैसा ।तो पाप-दोष भी पुण्य-तोष है मेरा,मैं रहूँ पंकिला, पद्म-कोष है मेरा ।(i) उपर्युक्त पद्यांश के शीर्षक और कवि का नाम लिखिए।(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।(iii) श्रीराम का कौन प्यारा है?(iv) कैकेयी को कौन दोगुने प्रिय हैं? क्य?(v) “मैं रहूँ पंकिला, पद्म-कोष है मेरा।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?

Answer»

(i) प्रस्तुत पद्यांश श्री मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘साकेत’ महाकाव्य से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘काव्यांजलि’ में संकलित ‘कैकेयी का अनुताप’ शीर्षक काव्यांश से उद्धृत है।
अथवा
शीर्षक का नाम-
 कैकेयी का अनुताप।
कवि का नाम–मैथिलीशरण गुप्त।
(ii) रेखांकित अंश की व्याख्या-कैकेयी श्रीराम से कहती हैं कि हे राम! मुझे यह भरत प्रिय है और भरत को तुम प्रिय हो। इस प्रकार तो तुम मुझे दोगुने प्रिय हो। तुम दोनों भाइयों के बीच जिस प्रकार का प्रेम सब लोगों के सामने प्रकट हुआ है, उससे तो मेरे पाप का दोष भी पुण्य के सन्तोष में बदल गया है। मुझे तो यह सन्तोष है कि मैं स्वयं कीचड़ के समान निन्दनीय हूँ, किन्तु मेरी कोख से कमल के समान निर्मल भरत को जन्म हुआ।
(iii) श्रीराम को भरत प्यारे हैं।
(iv) कैकेयी को भरत प्रिय हैं और भरत को राम प्रिय हैं इसलिए कैकेयी को राम और भरत दोगुने प्रिय हैं।
(v) रूपक अलंकार।



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