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“दिया बढ़ाएँ हूँ रहै, बड़ौ उज्यारौ गेह॥” कवि ने इस कथन को क्या आप वास्तविक मान सकते हैं? कवि का आशय क्या है? स्पष्ट कीजिए।

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दीपक बुझा देने पर भी नायिका के सुन्दर शरीर के कारण घर में उजाला बना रहना अतिशयोक्तिपूर्ण कथन है। कोई कितना भी गोरा और सुन्दर हो लेकिन वह दीपशिखा का काम नहीं कर सकता। उसकी सुन्दरता और रंग-रूप उजाले से ही सुशोभित दिखाई दे पाते हैं। अत: यह कथन में नायिका की सुन्दरता को बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहा गया है। बिहारी पर रीतिकालीन सौन्दर्य-वर्णन की अतिशयोक्तिपूर्ण शैली के प्रभाव का यह एक सुन्दर नमूना है।



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