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दक्षिणी पश्चिमी व्यापारिक पवनें मौनसून बर्षा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं?

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गर्मियों में हिन्द महासागर से आने वाली दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा से पार खिंच आती हैं। पृथ्वी की दैनिक गति के कारण इनकी दिशा बदल जाती है और ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर चलने लगती हैं। 1 जून को ये केरल के तट पर पहुंच कर एकाएक भारी वर्षा करने लगती हैं। इसे ‘मानसून का फटना’ कहा जाता है। पवनों की गति तेज़ होने के कारण ये एक ही मास में पूरे देश में फैल जाती हैं। इस प्रकार लगभग सारा भारत वर्षा के प्रभाव में आ जाता है।



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