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दसवीं पंचवर्षीय योजना का संक्षिप्त विवरण देते हुए इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।

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दसवीं पंचवर्षीय योजना
राष्ट्रीय विकास परिषद् ने 21 दिसम्बर, 2002 को दसवीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) को स्वीकृति दी। इस योजना में परिषद् के निर्देशों को और बेहतर करने का फैसला किया गया। परिषद् का निर्देश दस वर्ष में प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करना तथा प्रतिवर्ष घरेलू उत्पाद की दर आठ प्रतिशत हासिल करने का था। चूंकि आर्थिक विकास ही एक मात्र लक्ष्य नहीं होता है, इसलिए इस योजना का लक्ष्य आर्थिक विकास के लाभ से आम लोगों की जिन्दगी को बेहतर बनाने के लिए ये उद्देश्य निश्चित किये गये हैं-2007 तक गरीबी का अनुपात 26 प्रतिशत से घटाकर 21 प्रतिशत करना, जनसंख्या विकास की दर को (प्रति दस वर्ष) 1991-2001 के 21 प्रतिशत से घटाकर 2001-2011 में 16.2 प्रतिशत करना, लाभप्रद रोजगार की व्यवस्था कम-से-कम श्रम-शक्ति में हो रही वृद्धि के अनुपात में करना, सभी बच्चों को 2003 ई० तक स्कूलों में दाखिल करना और 2007 ई० तक सभी बच्चों की स्कूली पढ़ाई के पाँच साल पूरा करना, साक्षरता और मजदूरी के मामले में फर्क 50 प्रतिशत तक घटाना, साक्षरता की दर वर्ष 1999-2000 के 60 प्रतिशत से बढ़ाकर 2007 ई० तक 75 प्रतिशत तक पहुँचाना, सभी गाँवों में पेयजल पहुँचाना, शिशु मृत्यु-दर वर्ष 1999-2000 के 72 से घटाकर 2007 ई० तक 45 तक पहुँचाना, प्रसूति मृत्यु-दर को वर्ष 1999-2000 के चार से घटाकर 2007 ई० तक दो तक पहुँचाना, वानिकीकरण में वर्ष 1999-2000 के 19 प्रतिशत से बढ़ाकर 2007 ई० में 25 प्रतिशत तक पहुँचाना और नदियों के प्रमुख प्रदूषण स्थलों की सफाई कराना। दसवीं योजना की कई नयी विशेषताएँ हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं –
सर्वप्रथम इस योजना में श्रम-शक्ति के तीव्र विकास को स्वीकार किया है। विकास की मौजूदा दर और उत्पादन के क्षेत्र में मजदूरों की बढ़ती संख्या को देखते हुए देश में बेरोजगारी की सम्भावना बढ़ती जा रही है, जिससे सामाजिक अस्थिरता पैदा हो सकती है। इसीलिए दसवीं योजना में रोजगार के पाँच करोड़ अवसर सृजित करने का लक्ष्य तय किया गया है। इसके लिए कृषि, सिंचाई, कृषिवानिकी, लघु एवं मध्यम उद्योग सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा अन्य सेवाओं के रोजगारपरक क्षेत्रों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।

द्वितीयत: इस योजना में गरीबी और सामाजिक रूप से पिछड़ेपन के मुद्दों पर ध्यान दिया गया है। हालांकि पहले की योजनाओं में भी ये लक्ष्य रहे हैं, पर इस योजना में विशेष लक्ष्य रखे गये हैं। जिन पर विकास के लक्ष्यों के साथ ही निगरानी रखने की व्यवस्था है।

तृतीयतः चूँकि राष्ट्रीय लक्ष्य सन्तुलित क्षेत्रीय विकास के स्तर पर अनिवार्यतः लागू नहीं हो पाते और हर साल की क्षमता और कमियाँ अलग-अलग होती हैं, इसलिए दसवीं योजना में विकास की अलग-अलग कार्यनीति अपनायी गयी हैं। पहली बार राज्यवार विकास के और अन्य लक्ष्य इस तरह तय किये गये हैं जिनकी निगरानी रखी जा सके और इसके लिए राज्यों से भी सलाह ली गयी है जिससे उनकी अपनी विकास योजनाओं को विशेष महत्त्व दिया जा सके।

इस योजना की एक और विशेषता इस बात को महत्त्व देना है कि योजना को ज्यों-का-त्यों लागू करने में प्रशासन एक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। इसलिए इस योजना में प्रशासनिक सुधार की एक सूची तय की गयी है।

अन्ततः, मौजूदा बाजारोन्मुखी अर्थव्यवस्था को देखते हुए दसवीं योजना में उन नीतियों और संस्थाओं के स्वरूप पर विस्तार से विचार किया गया है जो जरूरी होंगी। दसवीं योजना में न सिर्फ एक मध्यावधि व्यापक आर्थिक नीति केन्द्र और राज्य दोनों के लिए अत्यन्त सतर्कतापूर्वक तैयार की गयी है, बल्कि हर क्षेत्र के लिए जरूरी नीति और संस्थागत सुधारों को निर्धारित किया गया है।
अर्थव्यवस्था में विर्गत पूँजी के अनुपात में वृद्धि को नौवीं योजना में 4.5 से घटाकर 3.6 होने का अनुमान है। यह उपनिधि मौजूदा क्षमता के बेहतर उपयोग और पूंजी के क्षेत्रवार समुचित प्रावधान और इसके अधिकतम उपयोग के जरिए सम्भव होगी। इसलिए विकास का लक्ष्य हासिल करने के लिए सकल घरेलू उत्पादन के 28.4 प्रतिशत के निवेश दर की आवश्यकता होगी। यह आवश्यकता सकल घरेलू उत्पादन में 26.8 प्रतिशत की बचत और 1.6 प्रतिशत की बाहरी बचत से पूरी की जाएगी अतिरिक्त घरेलू बचत का अधिकतम सरकार में बचत घटे को वर्ष 2001-02 के 4.5 से वर्ष 2006-07 में 0.5 तक कम करके प्राप्त किया जा सकता है।

दसवीं योजना में क्षमता बढ़ाने, उद्यमी ऊर्जा को उन्मुक्त करने तथा तीव्र और सतत विकास को बढ़ावा देने के उपायों का भी प्रस्ताव दिया गया है। दसवीं योजना में कृषि को केन्द्रीय महत्त्व दिया गया है। कृषि क्षेत्र में किये जाने वाले मुख्य सुधार इस प्रकार हैं-वाणिज्य और व्यापार में अन्तर्राज्यीय बाधाओं को दूर करना, आवश्यक उपभोक्ता वस्तु अधिनियम में संशोधन करने, कृषि उत्पाद विपणन कानून में संशोधन, कृषि व्यापार, कृषि उद्योग और निर्यात का उदारीकरण होने पर खेती को प्रोत्साहित करना और कृषि भूमि का पट्टे पर देने और लेने की अनुमति देने, खाद्य क्षेत्र से सम्बन्धित विभिन्न कानूनों को एक व्यापक ‘खाद्य कानून में बदलना, सभी वस्तुओं में वायदा व्यापार को अनुमति तथा भण्डारण और व्यापार के पूँजी-निवेश पर प्रतिबन्धों को हटाना।

सुधार के कुछ अन्य प्रमुख उपायों में एसआईसीए को निरस्त करना और परिसम्पत्ति के हस्तान्तरण को सुगम बनाने के लिए दिवालिया घोषित करने और फोर क्लोजर के कानूनों को मजबूत करना, श्रम कानूनों में सुधार, ग्राम और लघु उद्योग क्षेत्रों की नीतियों में सुधार तांकि बेहतर ऋण प्रौद्योगिकी, विपणन और कुशल कारीगरों की उपलब्धता सम्भव हो, विद्युत विधेयक का शीघ्र कार्यान्वयन, कोयला राष्ट्रीयकरण संशोधन विधेयक और संचार समरूप विधेयक में संशोधन, निजी सड़क परिवहन यात्री सेवा को मुक्त करना तथा सड़क की मरम्मत आदि में निजी क्षेत्र की भागीदारी सुनिश्चित करना, नागरिक उड्डयन नीति को शीघ्र मंजूरी देना, इस क्षेत्र को शीघ्र विनियमित करना और प्रमुख हवाई अड्डों पर निजी भागीदारी के जरिए विकास शामिल है। बढ़ता क्षेत्रीय असन्तुलन भी चिन्ता का विषय है। दसवीं योजना में सन्तुलित और समान क्षेत्रीय विकास का लक्ष्य तय किया गया है। इस पर आवश्यक ध्यान देने के लिए योजनाओं में राज्यवार लक्ष्य निर्धारित किये गये हैं। तत्काल नीतिगत और प्रशासनिक सुधारों की जरूरत को भी स्वीकृति दे दी गयी है।

शासन व्यवस्था योजनाओं को लागू करने में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारक होता है। इस दिशा में कुछ आवश्यक उपाय इस प्रकार है–बेहतर जन भागीदारी, खासतौर पर पंचायती राज संस्थानों और शहरी स्थानीय निकायों को मजबूत बनाकर, नागरिक समाज को शामिल करना, खासतौर पर स्वैच्छिक संगठनों को विकास में भागीदारी की भावना बनाकर, सूचना के अधिकार सम्बन्धी कानून को लागू करना, पारदर्शिता, क्षमता और जिम्मेदारी की भावना को बढ़ावा देने के लिए लोक सेवाओं में सुधार, कार्यकाल को संरक्षण, पुरस्कृत और दण्डित करने की बेहतर और समान व्यवस्था, सरकार के आकार और उसकी भूमिका को ठीक करना, राजस्व और न्यायिक सुधार तथा अच्छे प्रशासन के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग।



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