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घनानंद के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर एक टिप्पणी लिखिए।

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व्यक्तित्व – कवि घनानंद बादशाह मोहम्मद शाह ‘रंगीले’ के दरबार के मीर मुंशी हुआ करते थे। गुणी व्यक्ति थे। बादशाह के कृपापात्र थे। बड़े अधिकारी थे। लेकिन थे तो मनुष्य ही। दरबार की नर्तकी और गायिका को हृदय दे बैठे। इस ‘सुजान के अंध-प्रेम ने उनको इतना कुप्रभावित कर डाला कि उन्होंने फरमाइश किए जाने पर ‘सुजान’ की ओर मुख और बादशाह की ओर पीठ करके अपना गायन पेश किया।

दरबारी अदब का यह अपमानजनक उल्लंघन घनानंद को बहुत महँगा पड़ा। पद तो छिन ही गया, देश-निकाला भी मिल गया। यह भी बादशाह का उन पर बड़ा अहसान था। अन्यथा निरंकुश शासक कुछ भी दण्ड दे सकता था। जिस ‘सुजान’ पर घनानंद ने अपना मान, सम्मान, पद सब कुछ दाव पर लगाया था, उसी विलास की पुतली ने उनके साथ जाने से साफ मना कर दिया। टूटा दिल लेकर घनानंद वृन्दावन चले आए और अहमद शाह द्वितीय के आक्रमण के समय मचे कत्लेआम में काट डाले गए। घनानंद का काव्यपरक व्यक्तित्व एक परिपक्व प्रेमी के वियोगी हृदय का मंद-मंद विलाप है। ऐसे गुणी व्यक्ति का ऐसा करुण अंत हृदय को बड़ी पीड़ा पहुँचाता है।

कृतित्व – कवि घनानंद ब्रज भाषा के टकसाली कवि हैं। रीतिकालीन कवि होते हुए भी उनकी रचनाओं में संयमित विरह वर्णन हुआ है। उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ इस प्रकार हैं सुजान सागर, विरह लीला, कोकसार, कृपाकंद निबन्ध, रसकेलि वल्ली, सुजान हित, सुजान हित प्रबंध, घन आनंद कवित्त, इश्कलता, आनन्द घन जू की पदावली आदि।



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