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काहू कलपाय है सु कैसे कल पाय है ! पंक्ति का भावार्थ लिखिए।

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अपनी विकलता निष्ठुर प्रिय तक पहुँचाने के लिए घनानंद ने अनेक प्रयास किए हैं। कभी रो-कलप कर, कभी गिड़गिड़ाकर, कभी व्यंग्य का सहारा लेकर उन्होंने अपनी विरह-व्यथा सुजान तक पहुँचानी चाही है। प्रस्तुत पंक्ति एक प्रचलित लोकोक्ति है। जिसका भाव है कि जो दूसरों को कलपाएगा, तड़पाएगा वह स्वयं भी चैन से नहीं रह पाएगा। लगता है कवि के घायल हृदय ने इन शब्दों के माध्यम से निर्मोही सुजान को ‘मृदुल शाप’ दिया है। मुझे तुमने बहुत सताया है, कलपाया है, एक दिन तुम भी ऐसी तड़पोगी। कबीर भी कहे गए हैं- दुरबल को न सताइए ताकी मोटी आहे।



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