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मनभावन प्रियतम के सम्मुख होने पर भी विरही को उसका दर्शन लाभ नहीं मिलता। कारण बताइए।

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कवि घनानंद की विरही अपने प्रियतम के दर्शन पाने को व्याकुल रहता है। उसका दिन सबेरे से शाम तक वन की ओर निहारते बीतता है और रात तारे गिनते हुए बीतती है। इस पर भी जब प्रिय दर्शन का अवसर आता है, तो उसकी आँखों से आँसुओं की गंगा-यमुना प्रवाहित होने लगती है। बेचारा विरही प्रिय के सामने होते हुए भी दर्शन लाभ से वंचित रह जाता है। इसे उसके दुर्भाग्य के अतिरिक्त और क्या कहा जा सकता है।



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