1.

गरीबों की ऋण आवश्यकताएँ पूरी करने में अतिलघु साख व्यवस्था की भूमिका की व्याख्या करें।

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औपचारिक साख व्यवस्था में रह गई कमियों को दूर करने के लिए स्वयं सहायता समूहों (एच०एच०जी०) का भी ग्रामीण साख में प्रादुर्भाव हुआ है। स्वयं-सहायता समूहों ने सदस्यों की ओर से न्यूनतम योगदान की सहायता से लघु बचतों को प्रोत्साहित किया है। इन लघु बचतों से एकत्र राशि में से जरूरतमंद सदस्यों को ऋण दिया जाता है। उस ऋण की राशि छोटी-छोटी किस्तों में आसानी से लौटायी जाती है। ब्याज की दर भी उचित व तर्कसंगत रखी जाती है। इस प्रकार की साख उपलब्धता को अतिलघु साख कार्यक्रम भी कहा जाता है। इस प्रकार से स्वयं सहायता समूहों ने महिलाओं के सशक्तीकरण में सहायता की है। किंतु अभी तक इन ऋण सुविधाओं का प्रयोग किसी-न-किसी प्रकार के उपयोग के लिए। ही हो रहा है व कृषि कार्यों के लिए बहुत कम राशि ली जा रही है।



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