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गुट-निरपेक्ष आन्दोलन में भारत के योगदान का परीक्षण कीजिए।

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गुट-निरपेक्षता में भारत का योगदान
गुट-निरपेक्षता के विकास में भारत का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। भारत की विदेश नीति का प्रमुख सिद्धान्त ही गुट-निरपेक्षता है। सर्वप्रथम भारत ने ही एशिया तथा अफ्रीका के नवोदित स्वतन्त्र राष्ट्रों को परस्पर एकता और सहयोग के सूत्र में बाँधने का प्रयास किया था। ‘बांडुंग सम्मेलन’ में भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहरलाल नेहरू ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस प्रकार भारत गुट-निरपेक्षता का अग्रणी रहा है। पं० जवाहरलाल नेहरू का कथन था कि “चाहे कुछ भी हो जाए, हम किसी भी देश के साथ सैनिक सन्धि नहीं करेंगे। जब हम गुट-निरपेक्षता का विचार छोड़ते हैं तो हम अपना संसार छोड़कर हटने लगते हैं। किसी देश से बँधना-आत्म-सम्मान का खोना तथा अपनी बहुमूल्य नीति का अनादर करना है।’ पं० नेहरू के बाद श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने गुट-निरपेक्षता के विकास को अग्रसरित किया। प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सातवें सम्मेलन (1983) में नई दिल्ली में गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की अध्यक्षता ग्रहण की थी। श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने अपने एक भाषण में कहा था कि “गुट-निरपेक्षता अपने आप में एक नीति है। यह केवल एक लक्ष्य ही नहीं, इसके पीछे उद्देश्य यह है कि निर्णयकारी स्वतन्त्रता और राष्ट्र की सच्ची भक्ति तथा बुनियादी हितों की रक्षा की जाए।

प्रधानमन्त्री श्री राजीव गाँधी भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को प्रभावशाली बनाने के लिए कृतसंकल्प थे। 15 अगस्त, 1986 को श्री राजीव गाँधी ने कहा था कि “भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति के कारण ही भारत का विश्व में आदर है। भारत बोलता है तो वह आवाज सौ करोड़ लोगों की होती है। गुट-निरपेक्षता के मार्ग पर चलकर भारत आज बिना किसी दबाव के बोलता है। उसके साथ संसार के दो-तिहाई गुट-निरपेक्ष देशों की आवाज होती है।”

नवे शिखर सम्मेलन (सितम्बर 1989 ई०) में प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने कहा था कि गुट निरपेक्ष आन्दोलन तभी गतिशील रह सकता है, जब यह उन्हीं सिद्धान्तों पर चले, जिन पर चलने का वायदा यहाँ 1961 ई० में प्रथम सम्मेलन में सदस्यों ने किया था। ग्यारहवें शिखर सम्मेलन में भारत ने दो बातों के प्रसंग में महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। भारत ने आणविक शस्त्रों पर आणविक शाक्तियों के एकाधिकार का विरोध किया। बारहवें सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान की आणविक विस्फोट के लिए आलोचना की गयी। सम्मेलन में सम्मेलन के अध्यक्ष नेल्सन मण्डेला द्वारा कश्मीर समस्या का उल्लेख किये जाने पर भारत द्वारा कड़ी आपत्ति की गयी। भारत की आपत्ति को दृष्टि में रखते हुए नेल्सन मण्डेला ने अपना वक्तव्य वापस ले लिया। तेरहवें शिखर सम्मेलन में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता हेतु भी पहल की। प्रधानमन्त्री वी०पी० सिंह भी गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के प्रबल समर्थक रहे हैं और तत्पश्चात् प्रधानमन्त्री चन्द्रशेखर भी। इस आन्दोलन को सफल बनाने के लिए प्रयत्नशील थे। प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने भी इसी नीति को जारी रखा। इसके बाद प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार देश की सुरक्षा और अखण्डता के मुद्दे पर समयानुसार विदेश नीति निर्धारित करने के लिए दृढ़ संकल्प थी। वर्तमान में प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी भी इसी नीति को जारी रखे हुए हैं।



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