InterviewSolution
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हिंदुओं में बहिर्विवाह के नियम को स्पष्ट कीजिए। |
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Answer» बहिर्विवाह का तात्पर्य है अपने रक्त-समूह आदि के अंतर्गत आने वाले सदस्य से विवाह न करना। इस मान्यता के अनुसार विवाह अपने गोत्र, प्रवर और सपिंड वाले परिवारों में नहीं किया जा सकता। हिंदुओं में तीन प्रकार के बहिर्विवाह का प्रचलन है- ⦁ गोत्र बहिर्विवाह-गोत्र बहिर्विवाह को ठीक प्रकार से समझने के लिए आवश्यक है कि ‘गोत्र के अर्थ को समझा जाए। मजूमदार एवं मदन के शब्दों में, ‘एक गोत्र अधिकांश रूप से कुछ वंश-समूहों को योग होता है, जो अपनी उत्पत्ति एक कल्पित पूर्वज से मानते हैं। यह पूर्वज मानव, मानव के समान पश, पेड़, पौधा या निर्जीव वस्तु हो सकता है।’ गोत्र के संबंध में यह प्रथा प्रचलित है कि एक ही गोत्र के व्यक्तियों के बीच में निकट रक्त-संबंध होते हैं। इसलिए एक ही गोत्र के सभी युवक-युवतियाँ एक-दूसरे के भाई-बहन हैं। अतः सगोत्र अथव अंत:गोत्र विवाहों पर प्रतिबंध हैं; क्योंकि हिंदू समाज में भाई-बहन के बीच विवाह संबंध स्थापित नहीं हो सकते।। |
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