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Itne unche utho Kavita mein Nutan sawar Dene ki baat kisne Kahi gai hai

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चे उठो कि जितना उठा गगन है।देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि सेसिंचित करो धरा, समता की भाव वृष्टि सेजाति भेद की, धर्म-वेश कीकाले गोरे रंग-द्वेष कीज्वालाओं से जलते जग मेंइतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है॥नये हाथ से, वर्तमान का रूप सँवारोनयी तूलिका से चित्रों के रंग उभारोनये राग को नूतन स्वर दोभाषा को नूतन अक्षर दोयुग की नयी मूर्ति-रचना मेंइतने मौलिक बनो कि जितना स्वयं सृजन है॥लो अतीत से उतना ही जितना पोषक हैजीर्ण-शीर्ण का मोह मृत्यु का ही द्योतक हैतोड़ो बन्धन, रुके न चिन्तनगति, जीवन का सत्य चिरन्तनधारा के शाश्वत प्रवाह मेंइतने गतिमय बनो कि जितना परिवर्तन है।चाह रहे हम इस धरती को स्वर्ग बनानाअगर कहीं हो स्वर्ग, उसे धरती पर लानासूरज, चाँद, चाँदनी, तारेसब हैं प्रतिपल साथ हमारेदो कुरूप को रूप सलोनाइतने सुन्दर बनो कि जितना आकर्षण है॥



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