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जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर क्या प्रभाव पड़ता है ?

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पर्यावरण के सभी अंगों में जलवायु मानव-जीवन को सबसे अधिक प्रभावित करती है। भारत में कृषि राष्ट्र के अर्थतन्त्र की धुरी है, जो वर्षा की विषमता से सबसे अधिक प्रभावित होती है। मानसूनी वर्षा बड़ी ही अनियमित एवं अनिश्चित है। जिस वर्ष वर्षा अधिक एवं मूसलाधार रूप में होती है तो अतिवृष्टि के परिणामस्वरूप बाढ़ आ जाती हैं तथा भारी संख्या में धन-जन का विनाश करती हैं। इसके विपरीत जिन क्षेत्रों में वर्षा कम होती है या अनिश्चितता की स्थिति होती है तो अनावृष्टि के कारण सूखा पड़ जाता है, जिससे फसलें सूख जाती हैं तथा पशुधन को भी पर्याप्त हानि उठानी पड़ती है। जलवायु का प्राकृतिक वनस्पति व जीव-जन्तुओं पर प्रभाव निम्नलिखित है-

1. प्राकृतिक वनस्पति पर प्रभावकिसी देश की प्राकृतिक वनस्पति न केवल धरातल और मिट्टी के गुणों पर निर्भर करती है, वरन् वहाँ के तापमान और वर्षा का भी उस पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि पौधे के विकास के लिए वर्षा, तापमान, प्रकाश और वायु की आवश्यकता पड़ती है; उदाहरणार्थभूमध्यरेखीय प्रदेशों में निरन्तर तेज धूप, कड़ी गर्मी और अधिक वर्षा के कारण ऐसे वृक्ष उगते हैं; जिनकी पत्तियाँ घनी, ऊँचाई बहुत और लकड़ी अत्यन्त कठोर होती है। इसके विपरीत मरुस्थलों में काँटेदार झाड़ियाँ भी बड़ी कठिनाई से उग पाती हैं; क्योंकि यहाँ वर्षा का अभाव होता है। वास्तव में जलवायु वनस्पति का प्राणाधार है।

2. जीव-जन्तुओं पर प्रभाव– जलवायु की विविधता ने प्राणियों में भी विविधता स्थापित की है। जिस प्रकार विभिन्न जलवायु में विभिन्न प्रकार की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं, वैसे ही विभिन्न जलवायु प्रदेशों में अनेक प्रकार के जीव-जन्तु पाये जाते हैं; उदाहरणार्थ-कुछ जीव-जन्तु वृक्षों की शाखाओं पर रहकर सूर्य की गर्मी और प्रकाश प्राप्त करते हैं; जैसे-नाना प्रकार के बन्दर, चमगादड़ आदि। इसके विपरीत कुछ जीव-जन्तु जल में निवास करते हैं; जैसेमगरमच्छ, दरियाई घोड़े आदि। ठीक इससे भिन्न प्रकार के प्राणी टुण्ड्री प्रदेश में पाये जाते हैं जिनके शरीर पर लम्बे और मुलायम बाल होते हैं, जिनके कारण वे कठोर शीत से अपनी रक्षा करते हैं।



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