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जलविद्युत, ऊर्जा के गैर-पारम्परिके साधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों है?

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जलविद्युत, ऊर्जा के गैर-पारम्परिक साधनों की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि
⦁    जलविद्युत, ऊर्जा का अक्षय एवं अविरल स्रोत है अर्थात् जलविद्युत नव्यकरणीय ऊर्जा संसाधन है, जबकि ऊर्जा के अन्य पारम्परिक साधन कभी भी समाप्त हो सकते हैं अर्थात् उनका नवीनीकरण नहीं किया जा सकती है।

⦁    जलविद्युत उत्पादक शक्तिगृह का एक बार विकास हो जाने पर उसका उपयोग सदैव एवं सतत रूप में किया जा सकता है अर्थात् उसे परे बार-बार व्यय नहीं करना पड़ता है।

⦁    जलविद्युत शक्ति का उत्पादन जल से किया जाता है तथा जल ऊर्जा को स्थायी स्रोत है। अतः जलविद्युत शक्ति के उत्पादन में पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है, जबकि ऊर्जा के अन्य पारम्परिक साधन; यथा-कोयला, खनिज तेल आदि; धुआँ एवं गन्दगी उत्पन्न कर वायु प्रदूषण को जन्म देते

⦁    जलविद्युत, ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसे तारों (केबिल्स) के माध्यम से दुर्गम क्षेत्रों में भी उपभोक्ताओं को सुलभ कराया जा सकता है, जबकि पारम्परिक ऊर्जा संसाधनों को दूरवर्ती उपभोक्ताओं तक भेजने में बार-बार परिवहन व्यय करना पड़ता है।

⦁    जलविद्युत, शक्ति के विकास के लिए एक बार ही व्यय करना पड़ता है, जबकि पारम्परिक ऊर्जा संसाधनों के दोहन में बार-बार पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।

⦁     पारम्परिक ऊर्जा संसाधनों के उपभोग से पूर्व भण्डारण, निस्तारण तथा परिवहन में अत्यधिक व्यय करना पड़ता है, जबकि जलविद्युत शक्ति के उपभोग हेतु इस प्रकार का कोई व्यय नहीं करना पड़ता है।

⦁    पारम्परिक ऊर्जा संसाधन (खनिज तेल) ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तनाव उत्पन्न किए हैं, जैसा कि दक्षिण-पश्चिमी एशिया में, जबकि जलविद्युत शक्ति के साथ ऐसा कोई तथ्य नहीं है।

⦁    जलविद्युत शक्ति के उत्पादन के बाद जो जल शेष बचता है, उसके भौतिक एवं रासायनिक गुणों में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अत: इस जल का उपयोग सिंचन तथा अन्य कार्यों में आसानी से किया जा सकता है।



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