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जनहित याचिकाओं का अर्थ क्या है ? इनके महत्त्व पर प्रकाश डांलिए।

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जनहित याचिकाएँ : अर्थ

भारत में न्यायिक सक्रियता का मुख्य साधन जनहित याचिका है। कानून की सामान्य प्रक्रिया में कोई भी व्यक्ति तब न्यायालय जा सकता है जब उसका कोई व्यक्तिगत नुकसान हुआ हो। सन् 1979 ई० में इस अवधारणा में बदलाव आया। सन् 1979 ई० में न्यायालय ने ऐसे मुकदमे की सुनवाई करने का निर्णय लिया जिसे पीड़ित लोगों ने नहीं बल्कि उनकी ओर से दूसरों ने दाखिल किया था। चूंकि इस मामले में जनहित से सम्बन्धित एक मुकदमे पर विचार हो रहा था। अत: इसे और ऐसे ही मुकदमों को जनहित याचिका का नाम दिया गया।

कुछ मामलों में न्यायालय ने स्वयं ही समाचार-पत्र में प्रकाशित समाचार या विवरण आदि के आधार पर कार्यवाही प्रारम्भ कर दी। जैसे-आगरा प्रोटेक्शन होम केस।

जनहित याचिकाओं का आरम्भ

जनहित अभियोगों की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय ने की थी। भारत में इसकी शुरुआत 1981 ई० से हुई। इन अभियोगों की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी० एन० भगवती का विशेष योगदान रहा। इस प्रकार का पहला वाद भागलपुर (बिहार) जेल में बन्द विचाराधीन कैदियों का था। इसी प्रकार आगरा प्रोटेक्शन होम केस, मुम्बई के पटरीवालों की समस्या, तिलोनिया के श्रमिकों का केस, एशियाड श्रमिक केस प्रमुख जनहित के मुकदमे हैं।

जनहित याचिकाओं का महत्त्व

भारत में जनहित याचिकाओं का निम्नलिखित महत्त्व है

·समाज के निर्धन व्यक्तियों और कमजोर वर्गों को न्याय दिलाने में सहायक।

·कानूनी न्याय के साथ-साथ आर्थिक-सामाजिक न्याय पर बल।

·शासन की स्वेच्छाचारिता पर अंकुश लगाने में सहायक।

·शासन को जनहित के प्रति उत्तरदायित्व निभाने को प्रेरित करने में सहायक।

.न्यायपालिका को जनोन्मुखी स्वरूप प्रदान करने में सहायक।



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