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| 1. | न्यायिक सक्रियता से आप क्या समझते हैं ? न्यायिक सक्रियता का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए। | 
| Answer» न्यायिक सक्रियता न्यायपालिका शासन का प्रमुख अंग है। शासन के प्रत्येक अंग की भाँति इसे भी कुछ निश्चित प्रक्रियाओं और कार्यपालिकाओं की सीमा के अन्तर्गत कार्य करना पड़ता है। आजकल न्यायपालिका पर चर्चा के दौरान ‘न्यायिक सक्रियता बहुचर्चित बहस है।। न्यायिक सक्रियता क्या है ? न्यायिक सक्रियता से तात्पर्य ऐसी प्रवृत्ति से है जिसमें देश की न्यायपालिका सामाजिक और प्रशासनिक गतिविधियों को नियमित करने में शासन के अन्य अंगों-व्यवस्थापिका और कार्यपालिका से बढ़-चढ़कर भूमिका निभाने लगती है। पिछले कुछ वर्षों में भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों ने देश की राजनीति, प्रशासन और सामाजिक-आर्थिक जीवन में फैली हुई सुस्ती, भ्रष्टाचार और अन्याय के विरुद्ध कार्यपालिका और व्यवस्थापिका को निर्देशात्मक निर्णय दिये हैं। न्यायालय की इसी गतिविधि को न्यायिक सक्रियता कहते हैं। जनहित याचिका : आलोचना और मूल्यांकन न्यायिक सक्रियता के महत्त्वपूर्ण साधन जनहित याचिका की आलोचनाएँ भी बहुत हैं। आलोचकों का मानना है कि जनहित याचिकाएँ सस्ती लोकप्रियता और समाचार-पत्रों में स्थान पाने के लिए प्रस्तुत की गयीं और की जाती हैं। आलोचकों का यह भी मानना है कि जनहित याचिकाओं ने न्यायपालिका के कार्यभार को पहले से ही बोझिल भार को और अधिक बढ़ा दिया है। न्यायालयों में सुनवाई की प्रतीक्षा कर रहे मामलों की संख्या लाखों में है। आलोचकों का यह भी मानना है कि इन मुकदमों में न्यायालय द्वारा जारी किये गये निर्देश अव्यावहारिक हो सकते हैं, जिनका क्रियान्वयन कराना कार्यपालिका के लिए भी मुश्किल हो सकता है। इन आलोचनाओं के बावजूद जनहित याचिकाओं ने न्याय-व्यवस्था में एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है। जनहित याचिकाओं के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय भारतीय राजव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। | |