1.

काम कुसुम धनु सायक लीन्हे । सकल भुवन अपने बस कीन्हे ॥देबि तजिअ संसउ अस जानी। भंजब धनुषु राम सुनु रानी ॥सखी बचन सुनि भै परतीती । मिटा बिषादु बढी अति प्रीती ॥तब रामहि बिलोकि बैदेही । सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही ॥मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु प्रसन्न महेस भवानी ॥करहु सफल आपनि सेवकाई । करि हितु हरहु चाप गरुआई ॥गननायक बरदायक देवा । आजु लगें कीन्हिउँ तुझे सेवा ॥बार बार बिनती सुनि मोरी । करहु चाप गुरुता अति थोरी ॥

Answer»

[ कुसुम = पुष्प। सायक = बाण। संसउ = संशय। भंजब = तोड़ेंगे। बिषाद् = उदासी, निराशा। बिलोकि = देखकर। जेहि तेही = जिस किसी की। अकुलानी = व्याकुल होकर। सेवकाई = सेवा। हरहु = हरण कर लीजिए। गरुआई = गुरुता, भारीपन।]

प्रसंग-प्रस्तुत पद में सीताजी की माताजी का राम की क्षमता के सम्बन्ध में विश्वास और सीता द्वारा विभिन्न देवताओं की प्रार्थना किये जाने का वर्णन किया गया है। |

व्याख्या-गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि पुनः सीताजी की माताजी की सहेली उनको समझाती हुई कहती है कि कामदेव ने फूलों का ही धनुष-बाण लेकर समस्त लोकों को अपने वशीभूत कर रखा है। हे देवी ! इस बात को अच्छी तरह से समझकर आप अपने सन्देह का त्याग कर दीजिए। हे रानी !
आप सुनिए, श्रीरामचन्द्र जी धनुष को अवश्य ही तोड़ देंगे। सखी के मुख से इस प्रकार के सान्त्वनादायक वचनों को सुनकर जनक-भामिनी को श्रीरामचन्द्र जी की सामर्थ्य के सम्बन्ध में विश्वास हो गया, उनकी उदासी समाप्त हो गयी और श्रीराम के  प्रति उनके मन में स्नेह और भी अधिक बढ़ गया। इसी समय श्रीरामजी को देखकर; अर्थात् उनके सुकोमल बाह्य व्यक्तित्व का अवलोकन कर; सीताजी जो भी देवता उनके ध्यान में आया, उससे रामजी की सहायता हेतु विनती करने लगीं।

गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जनकनन्दिनी सीताजी व्याकुलचित्त होकर मन-ही-मन में प्रार्थना कर रही हैं कि “हे भगवान् शंकर ! हे माता पार्वती ! मुझ पर प्रसन्न हो जाइए और मैंने आपकी जो कुछ भी सेवा-आराधना की है उसका सुफल प्रदान करते हुए और मुझ पर कृपा करके धनुष की गुरुता अर्थात् भारीपन को बहुत ही कम कर दीजिए।” पुन: गणेश जी की प्रार्थना करती हुई कहती हैं कि “हे गणों के नायक और मन-वांछित वर देने वाले गणेश जी ! मैंने आज ही के दिन के लिए; अर्थात् श्रीराम जैसे पुरुष को पति-रूप में प्राप्त करने की इच्छा से; आपकी पूजा-अर्चना की थी। आप बार-बार की जा रही मेरी विनती को सुनिए और धनुष के भारीपन को बहुत ही कम कर दीजिए।”

काव्यगत सौन्दर्य-

⦁    मनवांछित प्राप्ति के लिए विभिन्न देवताओं की प्रार्थना करने की भारतीय परम्परा को स्पष्ट किया गया है।
⦁    भाषा-अवधी।
⦁    शैली-प्रबन्ध और वर्णनात्मक।
⦁    रस— भक्ति।
⦁    छन्द-चौपाई।
⦁    अलंकार-अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश।
⦁    गुण–प्रसाद।
⦁    शब्दशक्ति-अभिधा और लक्षणा।



Discussion

No Comment Found

Related InterviewSolutions