InterviewSolution
| 1. |
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।।मनिमय कनक नंद कैं आँगन, बिम्ब पकरिबैं धावत ॥कबहुँ निरखि हरि आपु छाँह कौं, कर सौं पकरने चाहत ।किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥कनक-भूमि पर कर-पग छाया, यह उपमा इक राजति ।करि-करि प्रतिपद प्रतिमनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ।।बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति ।अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु को दूध पियावति ॥ |
|
Answer» [मनिमय = मणियों से युक्त। कनक = सोना। पकरिबैं = पकड़ने को। धावत = दौड़ते हैं। निरखि = देखकर। राजत = सुशोभित होती हैं। दतियाँ = छोटे-छोटे दाँत। तिहिं = उनको। अवगाहत = पकड़ते हैं। कर-पग = हाथ और पैर। राजति = शोभित होती है। बसुधा = पृथ्वी। बैठकी = आसन। साजति = सजाती हैं। अँचरा तर = आँचल के नीचे।] प्रसंग—इस पद में कवि ने मणियों से युक्त आँगन में घुटनों के बल चलते हुए बालक श्रीकृष्ण की शोभा का वर्णन किया है। व्याख्या-श्रीकृष्ण के सौन्दर्य एवं बाल-लीलाओं का वर्णन करते हुए सूरदास जी कहते हैं कि . बालक कृष्ण अब घुटनों के बल चलने लगे हैं। राजा नन्द का आँगन सोने का बना है और मणियों से जटित है। उस आँगन में श्रीकृष्ण घुटनों के बल चलते हैं तो किलकारी भी मारते हैं और अपना प्रतिबिम्ब पकड़ने के लिए दौड़ते हैं। जब वे किलकारी मारकर हँसते हैं तो उनके मुख में दो दाँत शोभा देते हैं। उन दाँतों के प्रतिबिम्ब को भी वे पकड़ने का प्रयास करते हैं। उनके हाथ-पैरों की छाया उस सोने के फर्श पर ऐसी प्रतीत होती है, मानो प्रत्येक मणि में उनके बैठने के लिए पृथ्वी ने कमल का आसन सजा दिया है अथवा प्रत्येक मणि पर उनके कमल जैसे हाथ-पैरों का प्रतिबिम्ब पड़ने से ऐसा लगता है कि पृथ्वी पर कमल के फूलों का आसन बिछा हुआ हो। श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं को देखकर माता यशोदा जी बहुत आनन्दित होती हैं और बाबा नन्द को भी बार-बार वहाँ बुलाती हैं। इसके बाद माता यशोदा सूरदास के प्रभु बालक कृष्ण को अपने आँचल से ढककर दूध पिलाने लगती हैं। काव्यगत सौन्दर्य ⦁ प्रस्तुत पद में श्रीकृष्ण की सहज स्वाभाविक हाव-भावपूर्ण बाल-लीलाओं का सुन्दर और मनोहारी चित्रण हुआ है। आँगन फिरत घुटुरुवनि धाये। |
|