InterviewSolution
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‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर नायक कर्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए।या‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण का चरित्र उदघाटित कीजिए।या‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए और बताइए कि उन्हें जीवनभर अपने किस कृत्य के प्रति ग्लानि रही ?या‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण की वीरता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।या‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण के उत्कृष्ट व्यक्तित्व की तीन या चार चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।या‘कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कर्ण की दानशीलता पर प्रकाश डालते हुए उसके अन्य गुणों पर प्रकाश डालिए।याकर्ण सच्चे दानवीर, युद्धवीर तथा प्राणवीर थे।” इस कथन की पुष्टि कर्ण’ खण्डकाव्य के आधार पर कीजिए। |
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Answer» श्री केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’ द्वारा रचित ‘कर्ण’ नामक खण्डकाव्य का नायक महाभारत का अजेय योद्धा कर्ण है। इस काव्य में कर्ण के जन्म से लेकर मृत्यु तक की प्रमुख घटनाओं का वर्णन है। कर्ण की वीरता और उसके जीवन के करुण पक्ष का वर्णन करना ही कवि का लक्ष्य है। उसके चरित्र की विशेषताएँ इस प्रकार हैं (1) जन्म से परित्यक्त–अविवाहित कुन्ती ने सूर्य की उपासना के फलस्वरूप सूर्य के तेजस्वी अंश को पुत्र-रूप में प्राप्त किया था। कुन्ती द्वारा त्याग दिये जाने के कारण वह माता के स्नेह से तो वंचित न रहा किन्तु सूत-पुत्र कहलाये जाने के कारण आजीवन लांछित होता रहा। यह जानकर कि वह कुन्ती–पुत्र है, जिसको उसने लोक-समाज के लिए हृदय पर पत्थर रखकर त्याग दिया था, उसकी व्यथा और भी बढ़ गयी। (2) पग-पग पर अपमानित–वीर कर्ण समाज में सूत-पुत्र के रूप में जाना गया। राजभवन में राजकुमार अर्जुन ने उसे राधेय, सूत-पुत्र कहकर अपमानित किया तथा स्वयंवर-सभा में द्रौपदी ने मत्स्यवेध करने से रोककर उसको अपमानित किया। माता कुन्ती उसका इस प्रकार अपमान होते देखकर भी उसे अपना न सकी। ऐसे अपमानों से उसका हृदय प्रतिशोध की अग्नि से जल उठा। वह श्रीकृष्ण से अपने हृदय की पीड़ा को व्यक्त करते हुए कहता है– घृणा, अनादर, तिरस्क्रिया, यह मेरी करुण कहानी। (3) अद्वितीय तेजवान्–कर्ण सूर्य-पुत्र है; अतः स्वभावत: तेजस्वी है। उसका कमलमुख राजकुमारों की शोभा को हरण करने वाला है। युधिष्ठिर जलांजलि सर्ग में कहते हैं अद्वितीय था तेज, और अनुपम था उनका ओज।। कुन्ती उसके तेजस्वी व्यक्तित्व को देखकर विस्मित और गद्गद हो गयी थी। वह अपने पुत्र की शोभा देखती ही रह जाती है। कवि ने इसका वर्णन करते हुए लिखा है एक सूर्य था उगा गगन में ज्योतिर्मय छविमान। (4) स्नेह और ममता का भूखा–कर्ण जीवनभर अपनी माता, भाई और गुरुजनों का स्नेह न पा सका। उनसे उसे केवल लांछन और तिरस्कार हीं मिला। उसका हृदय सदा माँ की ममता पाने को तरसता रहा। वह कुन्ती से कहता है यों न उपेक्षित होता मैं, यों भाग्य न मेरा सोता। (5) अद्वितीय दानी-कर्ण अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था। उसने प्रण किया था कि जब तक वह अर्जुन का वध नहीं कर लेगा, तब तक जो भी याचक उससे जो कुछ माँगेगा, वह उसे देगा। उसके पिता सूर्य ने समझाया कि कपटी इन्द्र को अपने कवच-कुण्डल देकर अपनी शक्ति क्षीण न करो, परन्तु उसने सहर्ष इन्द्र को अपने कवच-कुण्डल पकड़ा दिये। वह कहता है कि धरती भले ही काँप उठे, आकाश फटने लगे; किन्तु कर्ण अपनी दानशीलता से कभी पीछे नहीं हट सकता चाहे पलट जाय पलभर में महाकाल की धारा। कवच-कुण्डल देकर उसने स्वयं अपनी मृत्यु बुला ली, परन्तु अपनी दानशीलता नहीं छोड़ी।। (6) दृढ़प्रतिज्ञ-कर्ण ने जो भी प्रण किया, उसे पूरा किया। अर्जुन का वध होने तक उसने दान का व्रत लिया था, जिसे उसने अपने कवच-कुण्डल देकर भी पूर्ण किया। कुन्ती को चारों भाइयों की रक्षा का वचन दिया था, उसे भी उसने युद्ध के समय में निभाया किन्तु न अपना प्रण भूले थे, वीर कर्ण पलभर भी। (7) आत्मविश्वासी-कर्ण को अपने शौर्य और पराक्रम पर अविचल आत्मविश्वास है। वह कृष्ण से, कुन्ती से और भीष्म से बातें करते हुए आत्मविश्वासपूर्वक अर्जुन का वध करने को कहता है। उसने कृष्ण । को स्पष्ट कह दिया था कि भले ही अब उसके पास कवच-कुण्डल नहीं हैं, किन्तु आत्मबल और आत्मविश्वास अब भी है। (8) अजेय योद्धा-कर्ण महान् पराक्रमी और अजेय योद्धा था। उसके रण-कौशल से सभी परिचित थे। अर्जुन के वध की उसकी प्रतिज्ञा सुनकर दुर्योधन को प्रसन्नता और पाण्डवों को भय उत्पन्न हुआ था। इन्द्र भी कर्ण के पराक्रम के कारण उसके द्वारा अर्जुन के वध की प्रतिज्ञा से चिन्तित थे। कृष्ण भी कर्ण की युद्ध-कुशलता से परिचित थे; अत: अर्जुन को नि:शस्त्र कर्ण पर धर्म-विरुद्ध प्रहार करने का आदेश देते हैं। कर्ण के पराक्रम तथा शौर्य की प्रशंसा शर-शय्या पर भीष्म पितामह भी करते हैं। (9) प्रतिशोध की भावना से दग्ध-स्वाभिमानी और वीर कर्ण को कदम-कदम पर अपमान और तिरस्कार सहना पड़ा। उसने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित होकर द्रौपदी को निर्वस्त्र करने के लिए दुःशासन को उकसाया। राजभवन में हुए अपमान के कारण ही उसने अर्जुन का वध करने का निश्चय किया। पाण्डवों का भाई होने पर भी प्रतिशोध की भावना ने ही उसकी स्नेह-भावना को नहीं जगने दिया। (10) विवेकी और कृतज्ञ-कृष्ण ने कर्ण को पाण्डवों का पक्ष लेने के लिए बहुत समझाया, किन्तु उसने उपकारी मित्र दुर्योधन से छल करना उचित नहीं समझा। वह दुर्योधन के उपकार को न भूलकर आजीवन उसके साथ रहता है। वह कृष्ण से कहता है- मैं कृतज्ञ हूँ दुर्योधन का, उपकारों से हारा। (11) पश्चात्ताप से युक्त–कर्ण को द्रौपदी का भरी सभा में कराया गया अपमान सदैव कष्ट देता रहा। वह कृष्ण से कहता है- धिक् कृतज्ञता को जिसने, ऐसा दुष्कर्म कराया। (12) करुणामय जीवन-कर्ण का सम्पूर्ण जीवन करुणा से पूर्ण था। जन्म होते ही उसे माता ने त्याग दिया। राजभवन में सूत-पुत्र होने के कारण उसे अपमानित होना पड़ा। द्रौपदी के द्वारा किये गये अपमान का घूटे पीना पड़ा। जीवनभर माता, भाई और गुरुजनों के स्नेह से वंचित रहना पड़ा। सगे भाइयों के विरुद्ध हथियार उठाने पड़े। अजेय-योद्धा होते हुए भी वह अन्यायपूर्वक मारा गया। इस प्रकार पूरे काव्य में वीर कर्ण के जीवन का करुण पक्ष ही उभारा गया है। उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि कर्ण महाभारत के वीरों का सिरमौर है, फिर भी उसे नियतिवश : अपमान, तिरस्कार और छल-प्रपंच का शिकार होना पड़ा। इस प्रकार कर्ण के जीवन का करुण पक्ष अत्यधिक मार्मिक है। |
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