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कृषि-पशुपालन और उद्योग के संबंध में कौटिल्य के विचार स्पष्ट कीजिए ।

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भारत के प्राचीन और प्रसिद्ध अर्थशास्त्री कौटिल्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में कृषि-पशुपालन और उद्योगों के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किए .

(1) कृषि : कौटिल्य ने कृषि को जीवन-निर्वाह का मुख्य साधन बताया है । कौटिल्य ने भूमि को दो प्रकारों में विभाजित किया

  • राज्यहस्तक की भूमि
  • व्यक्तिगत मालिकी की भूमि

इसमें से राज्यहस्तक की भूमि दासों, मजदूरों और केदीओं के पास से जुतवाकर, बुवाई करवायी जाती थी । भूमि का पूरा उपयोग कृषि के लिए हो ऐसा कौटिल्य मानते थे । इसलिए बंजर जमीन को कृषिलायक बनाने की सिफारिश करते हैं । कारण कि अनुत्पादक. भूमि का कोई अर्थ नहीं है । किसान कृषि उत्पादन करेगा, तो राज्य को महसूल प्राप्त होगा और किसान को उसकी आजीविका मिलेगी ।

(2) पशुपालन : कृषि के साथ ही पशुपालन जुड़ा हुआ है । इसलिए कौटिल्य ने पशुपालन के व्यवसाय के विकास का भी उल्लेग्व किया है और आय के साधनों में सम्मिलित किया है । इसमें कौटिल्य ने तीन प्रकार के पशुओं का उल्लेख किया है :

  • प्रशिक्षित पालतू पशुओं
  • दूध देनेवाले पशु
  • मृग्यावन के (जंगल के) पशु
    पशुपालन सम्बन्धी नियम और दंड की व्यवस्था भी कौटिल्य ने निर्देश दिया है ।

(3) उद्योग : कौटिल्य मानते थे कि आर्थिक दृष्टि से साधन-संपन्न राज्य ही समृद्ध और विकसित बन सकता है । इसलिए कौटिल्य । ने उद्योगों के विकास के लिए मार्गदर्शक विचार प्रस्तुत किये हैं । उनके अनुसार राजा को राज्य में नयी-नयी खाने खुदाना, कौशल्य (हुन्नर) उद्योग के कारखाने बढ़ाना, उद्योग के विकास के लिए राज्य को अनुकूलता का सर्जन करना और इसलिए परिवहन, संचार की सुविधाएँ बढ़ाना और उद्योगों द्वारा उत्पादित माल-सामान के विक्रय के लिए बाजार मिले इस प्रकार के शहरों का विकास करना चाहिए ।



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