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कविता का सरल अर्थ :(1) हरि बिन ……….. आणंद बरण्यू न जावै।(2) होरी खेलत ………. मोहनलाल बिहारी।

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(1) मीराबाई अपने आराध्य देव हरि के वियोग में व्याकुल हैं। वे कहती हैं कि हरि के बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। भगवान परम स्नेही हैं। वे कहती हैं कि भगवान मेरे हैं और मैं भगवान की हूँ। मुझे हरि के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। वे कहती हैं कि भगवान ने दर्शन देने का वादा किया था, पर उन्होंने अभी तक दर्शन नहीं दिए। इसलिए मेरा हदय अत्यंत बेचैन है। हे ईश्वर, मुझे दर्शन की प्रतीक्षा है। आप कब दर्शन देंगे। आपके कमल रूपी चरणों में मेरा मन लिप्त है। दर्शन न पाने से मुझे बहुत दुःख है। मीराबाई कहती हैं कि हे प्रभु, आप दर्शन दीजिए। आपका दर्शन पाने पर मुझे जो आनंद प्राप्त होगा, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

(2) मीराबाई वज में श्रीकृष्ण के होली खेलने का वर्णन कर रही हैं। वे कहती हैं कि श्रीकृष्ण होली खेल रहे हैं। इस अवसर पर मुरली, चंग और डफ जैसे अनोखे वाद्य बज रहे हैं। उनके व्रज की युवा नारियाँ होली खेल रही हैं। श्रीकृष्ण अपने हाथ से उठा-उठाकर चंदन और केसर छिड़क रहे हैं। वे अपनी मुट्टियों में लाल-लाल गुलाब भरकर चारों ओर सभी लोगों पर डाल रहे हैं। छल-छबीले सुंदर कृष्ण कन्हैया के साथ प्राण-प्यारी राधा हैं। वे तालियां बजाते हुए धमार रागवाला गीत गा रहे हैं। गोपियों के फाग खेलने से इतने गुलाल उड़ रहे हैं, जिससे लगता है व्रज में गुलाल की भारी गर्द उड़ रही हो। मीरा कहती हैं कि हे प्रभु, आप मन को मोह लेनेवाले हैं।



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