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कविता में कैसे जीवन शैली अपनाते हुए प्रभु को पाने का बाग क्या हुआ है​

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्सी से कवयित्री का तात्पर्य स्वयं के इस नाशवान शरीर से है। उनके अनुसार यह शरीर सदा साथ नहीं रहता। यह कच्चे धागे की भाँति है जो कभी भी साथ छोड़ देता है और इसी कच्चे धागे से वह जीवन नैया पार करने की कोशिश कर रही है।hope it HELPS YOUPLEASE FOLLOW and MARK as BRAINLIEST



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