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क्या अनुशासनहीनता एवं अव्यवस्था के होते हुए भी भारतीय संसद को राष्ट्र की प्रतिनिधि सभा कहा जा सकता है?

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संसद में अनुशासनहीनता एवं अव्यवस्था की घटनाओं के बाद भी भारतीय संसद राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था है, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। ये घटनाएँ संसद की अस्थायी घटनाएँ हैं, स्थायी विशेषताएँ नहीं। भारत संसार का सबसे बड़ा लोकतन्त्रात्मक देश है और विगत 70 वर्षों से निरन्तर सफलता की ऊँचाइयों की ओर अग्रसर है। अब तक संसद के 14 आम चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और स्वतन्त्र व निष्पक्ष रूप से हुए हैं। इनके कारण संसद के सदस्य समाज के सभी क्षेत्रों, वर्गों, धर्मों और समुदायों से चुने जाते हैं और संसद में अपना स्थान ग्रहण करते हैं और विचाराधीन विषयों पर विचार प्रकट करते हैं। संसद ही जनता का प्रतिनिधित्व करती है और राष्ट्र की प्रतिनिधि सभा कहलाने का अधिकार रखती है। कभी-कभी ऐसा लगता है कि संसद के सदस्य अपने आचरण से राष्ट्र का समय नष्ट करते हैं, जनता के धन का अपव्यय करते हैं और राष्ट्र तथा विश्व के समक्ष गलत आदर्श प्रस्तुत करते हैं, परन्तु यह भी लोकतन्त्र की एक विशेषता है और इसके द्वारा विपक्ष बहुमत की तानाशाही स्थापित नहीं होने देता और संसद कार्यपालिका पर अपना नियन्त्रण बनाए रखती है।

अनुशासन और अव्यवस्था की घटनाएँ हर रोज नहीं घटतीं और कभी-कभी की घटनाओं के आधार पर संसद के पूर्ण अस्तित्व को ही आलोचना का केन्द्र बनाना उचित नहीं है। संसद राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करती है, वह सरकार के तीनों अंगों में अधिक शक्तिशाली स्थिति अपनाए हुए है। यह राष्ट्रीय विकास में गति देने की भूमिका का भी निर्वाह करती है।



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