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Mahadevi varma ke upar kavita....

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पूछता क्यों शेष कितनी रात?छू नखों की क्रांति चिर संकेत पर जिनके जला तूस्निग्ध सुधि जिनकी लिये कज्जल-दिशा में हँस चला तूपरिधि बन घेरे तुझे, वे उँगलियाँ अवदात!झर गये ख्रद्योत सारे,तिमिर-वात्याचक्र में सब पिस गये अनमोल तारे;बुझ गई पवि के हृदय में काँपकर विद्युत-शिखा रे!साथ तेरा चाहती एकाकिनी बरसात!व्यंग्यमय है क्षितिज-घेराप्रश्नमय हर क्षण निठुर पूछता सा परिचय बसेरा;आज उत्तर हो सभी का ज्वालवाही श्वास तेरा!छीजता है इधर तू, उस ओर बढता प्रात!प्रणय लौ की आरती लेधूम लेखा स्वर्ण-अक्षत नील-कुमकुम वारती लेमूक प्राणों में व्यथा की स्नेह-उज्जवल भारती लेमिल, अरे बढ़ रहे यदि प्रलय झंझावात।कौन भय की बात।पूछता क्यों कितनी रात?



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