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मैथिलीशरण गुप्त जी को भारतीय सांस्कृतिक नव जागरण काल का राष्ट्रकवि क्यों कहा जाता है?

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मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि माना जाता है। उनके काव्य में राष्ट्रीयता की प्रबल भावना है। वह साम्प्रदायिकता, प्रादेशिकता तथा धर्मान्धता के विरुद्ध है। उनको राष्ट्रकवि मानने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं राष्ट्रवाद के गायक-गुप्त जी राष्ट्रीय भावनाओं के गायक हैं। उनके द्वारा लिखी ‘भारत-भारती’ नामक काव्य-रचना में स्वदेश प्रेम, भारत के अतीत गौरव, राष्ट्रीय जागरण, सर्वधर्म समभाव आदि का वर्णन मिलता है। गुप्त जी की इस रचना ने उनका राष्ट्रीय भावनाओं के कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया है।

मातृभूमि के प्रति श्रद्धा भाव – गुप्त जी में मातृभूमि के प्रति अपूर्व श्रद्धा का भाव है। स्वदेश में उनको सर्वेश की साकार मूर्ति दिखाई देती है।

करते अभिषेक प्रमोद हैं बलिहारी इस देश की।
हे मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।

संकीर्णता विरोधी – गुप्त जी संकीर्ण विचारों तथा भावनाओं को राष्ट्र के लिए हितकर नहीं मानते। उनके काव्य में संकीर्णता का । विरोध मिलता है। वह धर्म, सम्प्रदाय, प्रदेश आदि का भेद नहीं मानते। उनकी एकता से ही राष्ट्र की एकता को वह सम्भव मानते हैं।

गौरवमय अतीत – भारत के निवासी आर्य हैं, जिन्होंने विश्व को सभ्य और सुसंस्कृत बनाया है। अतीत पर गर्व का भाव भी गुप्त जी की राष्ट्रीय भावना का पोषक है

यह पुण्यभूमि प्रसिद्ध है इसके निवासी आर्य हैं।
विद्या कला कौशल सभी के जो प्रथम आचार्य हैं।

राष्ट्र के प्रति समर्पण – गुप्त जी राष्ट्र के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के प्रचारक हैं। राष्ट्र के लिए सर्वस्व त्यागने की भावना उनके काव्य में मिलती है

जिएँ तो सदा इसी के लिए, यही उल्लास रहे यह हर्ष।
निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष।।



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