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Answer» मॉण्टेसरी पद्धति के दोष (Defects of Montessori Method) यद्यपि मॉण्टेसरी शिक्षा-पद्धति बालकों की शिक्षा के लिए बड़ी उपयोगी है, तथापि इसमें कुछ दोष और कमियाँ भी हैं, जिनका विवेचन निम्नवत् किया जा सकता है| 1. अमनोवैज्ञानिक- किलपैट्रिक तथा स्टर्न ने मॉण्टेसरी पद्धति को अमनोवैज्ञानिक बताया है, क्योंकि इसमें बालकों से कुछ ऐसे कार्य कराए जाते हैं, जो उनके स्तर से ऊँचे हैं। कुछ शिक्षाशास्त्रियों का मत है कि चार वर्षीय बालक को अधिक लिखना-पढ़ना सिखाना लाभदायक नहीं है। 2. शक्ति मनोविज्ञान का अनुचित आधार- मॉण्टेसरी पद्धति में एक समय में केवल एक ही ज्ञानेन्द्रिय को शिक्षित करने की व्यवस्था की गई है। यह सिद्धान्त शक्ति मनोविज्ञान पर आधारित है और वर्तमान युग में शक्ति मनोविज्ञान को कोई मान्यता नहीं दी जाती है। वास्तव में सभी ज्ञानेन्द्रियाँ एक साथ कार्य करती हैं, इसलिए उनकी शिक्षा भी एक साथ होनी चाहिए। 3. ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा अपर्याप्त- मॉण्टेसरी की यह व्याख्या सही नहीं है कि सात वर्ष के बालकों में। उच्चकोटि की मानसिक क्रियाओं-स्मृति, विचार, कल्पना, तर्क-का अभाव रहता है और उसे केवल इन्द्रिय अनुभव प्राप्त होते हैं। मनोवैज्ञानिक परीक्षण से यह सिद्ध हो चुका है कि तीन वर्ष के बालक में भी मानसिक क्रियाएँ होती हैं। उसमें स्मृति, कल्पना, जिज्ञासा आदि होती हैं। वह प्रत्येक वस्तु के बारे में जानना चाहता है और साथ-साथ अपनी कल्पनाशक्ति का प्रयोग भी करता है। 4. गेस्टाल्ट.मनोविज्ञान के विरुद्ध- भाषा की शिक्षा के सम्बन्ध में आधुनिक विचारधारा यह है कि बालकों को पहले वाक्ये, फिर शब्द और बाद में अक्षर ज्ञान कराना चाहिए, लेकिन मॉण्टेसरी ने इसके विपरीत विचारधारा का प्रयोग किया है। उनका कहना है कि बालक को पहले अक्षर और तत्पश्चात् वाक्य का ज्ञान कराना चाहिए, इसलिए इस पद्धति को गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के विरुद्ध माना जाता है। 5. कल्पनात्मक एवं क्रियात्मक खेलों का अभाव- इस पद्धति का सबसे मुख्य दोष है कि यह बालक की कल्पनाशक्ति को अविकसित रखती है। इस पद्धति में कल्पनात्मक तथा क्रियात्मक खेलों का सर्वथा अभाव है। मॉण्टेसरी का विचार है कि बालक स्वयं कल्पनाओं से पूर्ण है, इसलिए उसे और काल्पनिक बनाना वास्तविक जीवन से दूर ले जाना है। इसलिए वे बालक को कला, कहानी, नाटक तथा कलात्मक भावनाओं से दूर रखना चाहती हैं, क्योंकि उनके विचार से व्यावहारिक जीवन की शिक्षा के लिए इनका कोई महत्त्व नहीं है। परन्तु मॉण्टेसरी यह भूल गई हैं कि कल्पना के सहारे । | मॉण्टेसरी पद्धति के दोष ही बालक अपनी मूल-प्रवृत्तियों को सन्तुष्ट करता है तथा अपने मानसिक तनाव को दूर करता है। इसके अभाव में विभिन्न प्रकार की भावना ग्रन्थियाँ बन जाती हैं और बालक का सम्पूर्ण व्यक्तित्व कुण्ठित हो जाता है। इसलिए कल्पना को स्थान न मिलने के कारण मॉण्टेसरी पद्धति दोषपूर्ण प्रतीत होती है। 6. समय और धन की अधिक आवश्यकता- इस पद्धति में। बालकों का बहुत-सा समय व्यर्थ नष्ट हो जाता है। सामान्य रूप से जो ज्ञान बालक एक महीने में ग्रहण कर सकता है, इस पद्धति द्वारा उसे। वह ज्ञान एक वर्ष में प्राप्त होता है। ज्ञानेन्द्रियों का अभ्यास मन्दबुद्धि के बालकों के लिए तो ठीक है, किन्तु वह साधारण बालक के लिए प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव निरर्थक है। साधारण बालक से इस प्रकार के अभ्यास कराना समय , शिक्षा उपकरणों पर अधिक बल की बरबादी करना है, क्योंकि घर और बाहर की अनेक वस्तुओं को । चाकचर आर बाहर का अनक वस्तुआ का प्रचार का अभाव देखकर और उनका प्रयोग करके उसकी इन्द्रियों पहले ही शिक्षित हो । प्रतिभाशाली बालकों के लिए जाती हैं। 7. प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव- जनता के अज्ञान के , सीमित स्वतन्त्रता कारण इस पद्धति के लिए प्रशिक्षित अध्यापक नहीं मिल पाते हैं। वातावरण के प्रभाव की उपेक्षा मॉण्टेसरी शिक्षा देने के लिए एक विशेष प्रकार का प्रशिक्षण लेना व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन होता है। हमारे देश में इस प्रकार का कोई प्रशिक्षण विद्यालय नहीं है। 8. शिक्षा उपकरणों पर अधिक बल- इस पद्धति में शिक्षा के उपकरणों को आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया जाता है। अमेरिकन शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा उपकरणों की कटु आलोचना की है। उनका कहना है कि अधिक शिक्षा उपकरणों से बालक का बौद्धिक विकास एकांगी रह जाता है। इससे बालक की आत्माभिव्यक्ति का क्षेत्र सीमित रह जाता है। इसके साथ-ही-साथ बालकों को उन क्रियाओं को करने के लिए बाध्य किया जाता है, जिनका वास्तविक जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं होता। 9. प्रचार का अभाव हमारे देश में इस पद्धति के समुचित प्रचार का अभाव है। सामान्य जनता मॉण्टेसरी विद्यालयों के विषय में कुछ नहीं जानती है। प्रचार और प्रोत्साहन के अभाव में मॉण्टेसरी शिक्षा पद्धति हमारे देश में अधिक प्रचलित नहीं हो पाई है। 10. प्रतिभाशाली बालकों के लिए अनुपयुक्त- वास्तव में मॉण्टेसरी पद्धति का आविष्कार मन्दबुद्धि और अपाहिज बालकों के लिए किया गया था। इसके शिक्षण उपकरण भी उन्हीं के लिए उपयुक्त हैं, इसलिए इस पद्धति से मन्दबुद्धि वाले बालक तो लाभ उठा सकते हैं, लेकिन प्रतिभाशाली बालकों को इससे कोई विशेष लाभ नहीं होता। 11. सीमित स्वतन्त्रता- इस पद्धति में बालक की स्वतन्त्रता सीमित होती है, क्योंकि उसे कुछ शिक्षा उपकरण देकर उनसे खेलने के लिए बाध्य किया जाता है। उसे किसी अन्य बालक से बातचीत करने का अधिकार भी नहीं होता। 12. वातावरण के प्रभाव की उपेक्षा- वातावरण के प्रभाव को जितना महत्त्व मिलना चाहिए, उतना महत्त्व इस पद्धति में नहीं मिला है। मॉण्टेसरी का यह मत नितान्त अवैज्ञानिक है कि सब कुछ बालक के ही अन्त:करण में विद्यमान है और उन आन्तरिक शक्तियों को ही विकसित करने का प्रयत्न करना चाहिए। वातावरण के प्रभाव से बालकों में बहुत-सी बुरी आदतें भी फ्ड़ जाती हैं। इसलिए मॉण्टेसरी स्कूलों में अध्यापिका हस्तक्षेप नहीं करेगी तो बालक का चरित्र कैसे बनेगा? 13. व्यक्तिवाद को प्रोत्साहन- मॉण्टेसरी पद्धति पूर्ण रूप से व्यक्तिवादी है और इसमें बालकों को सामूहिक तथा सामाजिक कार्य करने के लिए कोई अवसर नहीं दिया गया है। इससे बालकों में अभिमान और स्वार्थ की भावना आ जाती हैं, क्योंकि बालक अलग-अलग रहकर शिक्षा उपकरणों से खेलते रहते हैं। इसके परिणामस्वरूप उनमें सामाजिकता तथा सहकारिता की भावना का विकास नहीं हो पाता है। 14. राष्ट्रीयता की भावना का अभाव- हमारे देश में राष्ट्रीयता की भावना की कमी के कारण भी मॉण्टेसरी पद्धति को अधिक प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है। जिन पर शासन का उत्तरदायित्व है वे अपने स्वार्थ के कारण यह चाहते हैं कि गरीबी-अमीरी का भेदभाव बना रहे। उन्हीं के बच्चे शासक बने, इसलिए वे ही लोग जनता की शिक्षा के प्रति उदार नहीं हैं। | 15. अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव–अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना का अभाव भी मॉण्टेसरी पद्धति के मार्ग में बाधक है। कुछ लोगों का कहना है कि यह एक विदेशी शिक्षा-प्रणाली है और इसकी जड़े हमारे देश की मिट्टी में न होकर अन्यत्र हैं।
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