1.

 मोरपना सिर पर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।ओढ़ि पितांबर लै लकुटी बन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।भावतो वोहि मेरो रसखानि सों तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।भावार्थ : कृष्ण के सौन्दर्य पर मोहित एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी ! मैं सिर के ऊपर मोरपंख्य रसुंगी, गुंजों की माला पहनूँगी। मैं पीले वस्त्र धारण करके गायों के पीछे लाठी लेकर ग्वालों के संग वन में भ्रमण करूँगी। श्रीकृष्ण को जो भी अच्छा लगता है तुम्हारे कहने से मैं वह सब कुछ करने को तैयार हूँ, किन्तु मुरलीधर के होठों से लगी बांसुरी को अपने होठों से नहीं लगाऊँगी।1. गोपी श्रीकृष्ण का रूप बनाने के लिए क्या-क्या करने को तैयार है ?2. गोपी किसे अच्छा लगनेवाला शृंगार करना चाहती है ?3. गोपी श्रीकृष्ण की मुरली को अपने अधरों पर क्यों नहीं लगाना चाहती ?4. गोपी श्रीकृष्ण का शृंगार क्यों करना चाहती है ?5. प्रस्तुत सवैये से अनुप्रास अलंकार का एक उदाहरण लिखिए।6. सवैये की अंतिम पंक्ति में अनुप्रास के अतिरिक्त अन्य कौन-सा अलंकार है ?7. ‘पीतांबर’ में कौन-सा समास है ?।

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1. गोपी श्रीकृष्ण का रूप बनाने के लिए सिर पर मोर पंख का मुकुट, गले में गुंजों की माला और शरीर पर पीला वस्त्र धारण करने को तैयार है। वह श्रीकृष्ण की तरह गायों को चरानेवाली लाठी भी हाथ में रखना चाहती है।

2. गोपी श्रीकृष्ण को अच्छा लगनेवाला शृंगार करना चाहती है।

3. श्रीकृष्ण को मुरली बहुत प्रिय है। वे गोपियों को छोड़ मुरली को हमेशा अपने होठों से लगाए रहते हैं, जिससे गोपियों को श्रीकृष्ण की मुरली जितनी निकटता नहीं मिल पाती है इसी ईर्ष्याभाव के कारण गोपी मुरली को अपने होठों पर नहीं रखना चाहती है।

4. गोपी श्रीकृष्ण से अनन्य प्रेम करती है। वह श्रीकृष्ण का रूप धारण करके कृष्णमय हो जाना चाहती है इसीलिए वह स्थांग में श्रीकृष्ण की तरह पूरा शृंगार करना चाहती है।

5. ‘या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी’ में ‘म’ ‘अ’ और ‘ध’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।

6. सवैये की अंतिम पंक्ति में अनुप्रास के अतिरिक्त यमक अलंकार है। ‘अधरान’ शब्द दो बार आया है, जिसमें पहले ‘अधरान’ का अर्थ ‘होठ पर’ और दूसरे ‘अधरा न’ का ‘होठ पर नहीं है।

7. पीताम्बर – पीला है जो वस्त्र – कर्मधारय समास |



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