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“मुगल साम्राज्य की स्थापना बाबर ने की, परन्तु उसका विकास एवं सुदृढ़ीकरण अकबर ने किया।” इस कथन की विवेचना कीजिए।

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मुगल साम्राज्य की स्थापना काबुल के शासक एवं अकबर के दादा बाबर ने की। पानीपत तथा खानवा के युद्धों में उसने भारत की दोनों प्रमुख शक्तियों को पराजित करके उनका विनाश करने का प्रयास किया था। किन्तु बाबर द्वारा भारत की विजय केवल एक सैनिक विजय थी; अत: वह स्थायी नहीं हो सकी, इस दृष्टिकोण से बाबर मुगल वंश की स्थापना करने में सर्वथा असफल रहा। वह केवल एक वीर विजेता था, परन्तु शासक के गुणों का उसमें सर्वथा अभाव था। उसने साम्राज्य की विशृंखलता एवं अव्यवस्था को ठीक करने का कोई प्रयास नहीं किया तथा अपने पुत्र हुमायूं के मार्ग में उसने भयंकर काँटे बो दिए, जिनके कारण हुमायूँ को जीवन भर संघर्ष करना पड़ा। हुमायूँ ने 15 वर्ष के निर्वासन के पश्चात जब भारत पर पुनः अधिकार किया तो कुछ समय बाद ही उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार अकबर को अव्यवस्थित और नाममात्र का राज्य उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था, जिसे अपने चारित्रिक गुणों से उसने विशाल एवं सुदृढ़ बनाया। उसने सम्पूर्ण भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की। जीवन भर कठोर परिश्रम करके अपने उत्तराधिकारियों के लिए उसने जो राज्य छोड़ा, वह इतना दृढ़ तथा शक्तिशाली था कि भयंकर आघात सहन करके भी लगभग 200 वर्षों तक चलता रहा। मुगल शासकों में ही नहीं सम्पूर्ण मध्ययुग के भारतीय शासकों में अकबर को श्रेष्ठ स्थान किया गया है।
मुगल साम्राज्य को भारत में स्थायित्व के साथ संस्थापित करने का श्रेय निश्चय की अकबर को है। उसने राजस्व और शासन में जिन नवीन तत्त्वों एवं उदार सिद्धान्तों का भारतीय परिवेश के साथ समन्वय किया, वह निश्चय ही अतुलनीय है। उससे पूर्व कोई मुसलमान शासक इतने वृहत् स्तर पर ऐसा नहीं कर सका। उसकी सुलह-कुल की नीति ने उसे एक राष्ट्रीय शासक के निकट ला खड़ा किया। अकबर से पहले शेरशाह ने प्रजा की भलाई के लिए कार्य किया था परन्तु शेरशाह को थोड़ा समय मिला। शेरशाह के विपरित अकबर को अपनी नीति और प्रभाव को देखने के लिए एक लम्बा समय प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्त, वह निश्चय ही शेरशाह की तुलना में अधिक उदार दृढ़, नीतिज्ञ और विशाल दृष्टिकोण वाला सिद्ध हुआ। उसकी उदार एवं व्यावहारिक नीति के कारण उसके वंशों को भिन्न धर्मावलम्बियों पर शासन करने का अधिकार प्राप्त हुआ।

इसी में अकबर की महानता थी। अकबर की मौलिक योग्यता और सफलताओं की तुलना तत्कालीन यूरोपीय शासकों से करने पर उसकी श्रेष्ठता स्थापित होती है। अकबर के चरित्र और उसके कार्यों के बारे में मतभेद हो सकते हैं। कुछ उसे राष्ट्रीय शासक, श्रेष्ठ व्यवस्थापक एवं प्रबन्धक मानते हैं तो कुछ उसे ऐसा नहीं मानते हैं। वे अकबर की चन्द गलतियों एवं कतिपय बुराइयों की ओर ध्यान खीचते है। तथा इस ओर ध्यान देने में असफल रहते हैं कि अकबर ने ही मध्ययुग में सम्पूर्ण प्रजा के साथ शासन के सभी क्षेत्रों में समान व्यवहार अपनाने की प्राचीन भारतीय शासकों के आदर्श का अनुसरण किया। धर्म, जाति एवं वंश के आधार पर इससे अधिक उन्मीद करना बेईमानी होगी। अकबर की शासन-व्यवस्था ऐसी थी जिसमें उसके सभी नागरिक अपने को एक राज्य का नागरिक मान सकते थे और राज्य से समान सुविधाओं और सुरक्षा की आशा कर सकते थे।



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